रूद्र अष्टकम - सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और पढ़ने के लाभ
Mon - Apr 01, 2024
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रुद्र अष्टकम एक संस्कृत भजन है जो भगवान शिव की स्तुति में रचा गया है, जिन्हें रुद्र के नाम से भी जाना जाता है। रुद्र अष्टकम का श्रेय महान ऋषि गोस्वामी तुलसीदास को दिया जाता है, जो भगवान राम के जीवन पर एक महाकाव्य रामचरितमानस की रचना के लिए भी जाने जाते हैं। रुद्र अष्टकम भगवान शिव के विभिन्न गुणों और रूपों का गुणगान करता है और उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करता है। भक्तों द्वारा आशीर्वाद, सुरक्षा और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए अक्सर इसका जाप किया जाता है। रुद्र अष्टकम का प्रत्येक श्लोक भगवान शिव की दिव्य प्रकृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जैसे बुराई का नाश करने वाला उनका रूप, अपने भक्तों के प्रति उनकी उदारता और उनके पारलौकिक गुण।

मंत्र
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
मंत्र का अर्थ
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
अर्थ - हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ. निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ ।
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
अर्थ - निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
अर्थ - जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है ।
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
अर्थ - जिनके कानों में कुंडल शोभा पा रहे हैं। सुंदर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकंठ और दयालु हैं। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
अर्थ - प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
अर्थ - कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
अर्थ - जब तक मनुष्य श्री पार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में, न ही परलोक में सुख-शांति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
अर्थ - मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दुख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिए। हे शंभो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
रूद्र अष्टकम के लाभ
रुद्राष्टकम एक संस्कृत रचना है जिसमें हिंदू धर्म के सर्वोच्च देवता भगवान शिव की स्तुति में आठ छंद शामिल हैं। माना जाता है कि रुद्राष्टकम का जाप या पाठ करने से कई लाभ मिलते हैं:
1. शांति और शांति की प्राप्ति
2. बाधाओं को दूर करना
3. नकारात्मकता से सुरक्षा
4. पापों और कर्मों का विनाश
5. उपचार और कल्याण
6. इच्छाओं की पूर्ति
7. आध्यात्मिक जागरूकता में वृद्धि
8. दैवीय कृपा की प्राप्ति
अष्टकम का जाप कैसे करें ?
रुद्र अष्टकम का जाप एक पवित्र अभ्यास है जिसे भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जा सकता है।
खुद को तैयार करें: एक शांत और साफ जगह ढूंढें जहां आप बिना किसी परेशानी के आराम से बैठ सकें। जप शुरू करने से पहले खुद को शुद्ध करने के लिए अपने हाथ और चेहरा धो लें।
अपना इरादा निर्धारित करें: जप शुरू करने से पहले, अभ्यास के लिए अपना इरादा निर्धारित करें। आप भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करना चाहते हैं, उनका आशीर्वाद लेना चाहते हैं, या बस भजन के आध्यात्मिक स्पंदनों में खुद को डुबो देना चाहते हैं।
फोकस और एकाग्रता: अपने मन को रुद्र अष्टकम के शब्दों और अर्थों पर केंद्रित करें। भगवान शिव के दिव्य रूप की कल्पना करने का प्रयास करें और प्रत्येक श्लोक का जाप करते समय उनकी उपस्थिति को महसूस करें।
सही उच्चारण: यदि आप संस्कृत से अपरिचित हैं, तो किसी योग्य व्यक्ति द्वारा सुनाए गए रुद्र अष्टकम की ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनें, और सही उच्चारण सीखने के लिए उनके बाद दोहराएं।
जप: रूद्र अष्टकम का जप ईमानदारी और भक्ति से शुरू करें। प्रत्येक श्लोक का जप धीरे-धीरे और मधुरता से करें, जिससे ध्वनि के कंपन आपके भीतर गूंजने लगें। आप अपनी पसंद के आधार पर जोर से या चुपचाप जप कर सकते हैं।
दोहराएँ: रुद्र अष्टकम के प्रत्येक श्लोक का जप तब तक जारी रखें जब तक कि आप सभी आठ श्लोक पूरे न कर लें। अपना समय लें और पूरे जप के दौरान एक स्थिर लय बनाए रखने का प्रयास करें।
चिंतन: जप पूरा करने के बाद, श्लोकों के अर्थ और अपने जीवन में भगवान शिव के महत्व पर विचार करने के लिए कुछ क्षण निकालें। इस पवित्र अभ्यास के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने के अवसर के लिए कृतज्ञता की भावना महसूस करें।
समापन: अपनी भक्ति व्यक्त करते हुए और उनका आशीर्वाद मांगते हुए, भगवान शिव की प्रार्थना करें। आप एक संक्षिप्त प्रार्थना या ध्यान के साथ जप समाप्त कर सकते हैं, या बस कुछ क्षणों के लिए मौन में बैठ सकते हैं, अभ्यास की ऊर्जा को अवशोषित कर सकते हैं।
रूद्र अष्टकम का जाप कौन कर सकता है और कब करना चाहिए?
कोई भी व्यक्ति अपनी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना रुद्राष्टकम का जाप कर सकता है। इसका पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन इसका जाप अक्सर सुबह या शाम की प्रार्थना के दौरान, सोमवार (भगवान शिव के लिए शुभ माना जाता है) या संकट के समय भगवान शिव से आशीर्वाद, सुरक्षा और आध्यात्मिक उत्थान के लिए किया जाता है।
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