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Shiv Raksha Stotra - शिव रक्षा स्तोत्र का अर्थ और इसे पाठ करकने के फायदे

Tue - Mar 19, 2024

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शिव रक्षा स्तोत्र ऋषि बुद्ध कौशिका द्वारा रचित एक पवित्र भजन है, जो भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध एक प्राचीन ऋषि थे। इसकी रचना की सही तारीख निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति प्राचीन काल से मानी जाती है। यह स्तोत्र भगवान शिव का एक शक्तिशाली आह्वान है, जो जीवन में विभिन्न खतरों और बाधाओं से सुरक्षा की मांग करता है। ऐसा माना जाता है कि विश्वास और भक्ति के साथ शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो सकती है और भक्त को दिव्य आशीर्वाद मिल सकता है।

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|| शिव रक्षा स्तोत्र ||

विनियोग: - ऊँ अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि:, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोग: ।

चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ।।1।।

गौरीविनायकोपेतं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नर: ।।2।।

गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दुशेखर: ।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषण: ।।3।।

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पति:।
जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरां शितिकन्धर:।।4।।

श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर:।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।।5।।

हृदयं शंकर: पातु जठरं गिरिजापति: ।
नाभिं मृत्युंजय: पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बर: ।।6।।

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सल: ।
ऊरू महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर: ।।7।।

जंघे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिप: ।
चरणौ करुणासिन्धु: सर्वांगानि सदाशिव: ।।8।।

एतां शिवबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् ।।9।।

ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ।।10।।

अभयंकरनामेदं कवचं पार्वतीपते: ।
भक्त्या बिभर्ति य: कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।।11।।

इमां नारायण: स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत् ।।12।।

।।इति श्रीयाज्ञवल्क्यप्रोक्तं शिवरक्षास्तोत्रमं सम्पूर्णम्।।

शिव रक्षा स्तोत्र का अर्थ

विनियोग: - ऊँ अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि:, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोग: ।
अर्थ - विनियोग - इस शिवरक्षास्तोत्र मन्त्र के याज्ञवल्क्य ऋषि हैं, श्रीसदाशिव देवता हैं और अनुष्टुप छन्द है, श्रीसदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिवरक्षास्तोत्र के जप में इसका विनियोग किया जाता है.

चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ।।1।।
अर्थ - देवाधिदेव महादेव का यह परम पवित्र चरित्र चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) - की सिद्धि प्रदान करने वाला दाशन है, यह अतीव उदार है. इसकी उदारता का पार नहीं है.

गौरीविनायकोपेतं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नर: ।।2।।
अर्थ - साधक को गौरी और विनायक से युक्त, पाँच मुख वाले दश भुजाधारी त्र्यम्बक भगवान शिव का ध्यान करके शिवरक्षास्तोत्र का पाठ करना चाहिए.

गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दुशेखर: ।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषण: ।।3।।
अर्थ - गंगा को जटाजूट में धारण करने वाले गंगाधर शिव मेरे मस्त्क की, शिरोभूषण के रूप में अर्धचन्द्र को धारण करने वाले अर्धेन्दुशेखर मेरे ललाट की, मदन को ध्वंस करने वाले मदनदहन मेरे दोनों नेत्रों की, सर्प को आभूषण के रूप में धारण करने वाले सर्पविभूषण शिव मेरे कानों की रक्षा करें.

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पति:।
जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरां शितिकन्धर:।।4।।
अर्थ - त्रिपुरासुर के विनाशक पुराराति मेरे घ्राण (नाक) की, जगत की रक्षा करने वाले जगत्पति मेरे मुख की, वाणी के स्वामी वागीश्वर मेरी जिह्वा की, शितिकन्धर (नीलकण्ठ) मेरी गर्दन की रक्षा करें.

श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर:।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।।5।।
अर्थ - श्री अर्थात सरस्वती यानी वाणी निवास करती है जिनके कण्ठ में, ऎसे श्रीकण्ठ मेरे कण्ठ की, विश्व की धुरी को धारण करने वाले विश्वधुरन्धर शिव मेरे दोनों कन्धों की, पृथ्वी के भारस्वरुप दैत्यादि का संहार करने वाले भूभारसंहर्ता शिव मेरी दोनों भुजाओं की, पिनाक धारण करने वाले पिनाकधृक मेरे दोनों हाथों की रक्षा करें.

हृदयं शंकर: पातु जठरं गिरिजापति: ।
नाभिं मृत्युंजय: पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बर: ।।6।।
अर्थ - भगवान शंकर मेरे हृदय की और गिरिजापति मेरे जठरदेश की रक्षा करें. भगवान मृत्युंजय मेरी नाभि की रक्षा करें तथा व्याघ्रचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले भगवान शिव मेरे कटि-प्रदेश की रक्षा करें.

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सल: ।
ऊरू महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर: ।।7।।
अर्थ - दीन, आर्त और शरणागतों के प्रेमी - दीनार्तशरणागतवत्सल मेरे समस्त सक्थियों (हड्डियों) की, महेश्वर मेरे ऊरूओं तथा जगदीश्वर मेरे जानुओं की रक्षा करें.

जंघे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिप: ।
चरणौ करुणासिन्धु: सर्वांगानि सदाशिव: ।।8।।
अर्थ - जगत्कर्ता मेरे जंघाओं की, गणाधिप दोनों गुल्फों (एड़ी की ऊपरी ग्रंथि) की, करुणासिन्धु दोनों चरणों की तथा भगवान सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें.

एतां शिवबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् ।।9।।
अर्थ - जो सुकृती साधक कल्याणकारिणी शक्ति से युक्त इस शिवरक्षास्तोत्र का पाठ करता है, वह समस्त कामनाओं का उपभोग कर अन्त में शिवसायुज्य को प्राप्त करता है.

ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ।।10।।
अर्थ - त्रिलोक में जितने ग्रह, भूत, पिशाच आदि विचरण करते हैं, वे सभी इस शिवऱअस्तोत्र के पाठ मात्र से ही तत्क्षण दूर भाग जाते हैं.

अभयंकरनामेदं कवचं पार्वतीपते: ।
भक्त्या बिभर्ति य: कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।।11।।
अर्थ - जो साधक भक्तिपूर्वक पार्वतीपति शंकर के इस “अभयंकर” नामक कवच को कण्ठ में धारण करता है, तीनों लोक उसके अधीन हो जाते हैं.

इमां नारायण: स्वप्ने शिवरक्षां यथाssदिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाsलिखत् ।।12।।
अर्थ - भगवान नारायण ने स्वप्न में इस “शिवरक्षास्तोत्र” का इस प्रकार उपदेश किया, योगीन्द्र मुनि याज्ञवल्क्य ने प्रात:काल उठकर उसी प्रकार इस स्तोत्र को लिख लिया.


शिव रक्षा स्तोत्र पाठ के लाभ

शिव रक्षा स्तोत्र का हिंदू परंपरा में गहरा महत्व है, माना जाता है कि यह अपने भक्तों को कई लाभ प्रदान करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जुड़े कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
• रोगों से सुरक्षा
• बुरी आत्माओं से बचाव
• सुख और समृद्धि
• नकारात्मकता दूर होती है
• मनोकामनाओं की पूर्ति
• दीर्घायु और खुशी
• विजय और सफलता
• मुक्ति और आध्यात्मिक सुरक्षा

शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ कब करें?

शिव रक्षा स्तोत्र का जाप किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन कुछ शुभ अवसर और विशिष्ट परिस्थितियाँ होती हैं जब इसका पाठ आमतौर पर किया जाता है:

1. महा शिवरात्रि: यह भगवान शिव को समर्पित सबसे शुभ दिन है। कई भक्त भगवान शिव की प्रार्थना और भक्ति के रूप में महा शिवरात्रि पर शिव रक्षा स्तोत्र का जाप करते हैं।
2. प्रदोष व्रत: महीने में दो बार चंद्र पखवाड़े के 13वें दिन मनाया जाने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस दौरान शिव रक्षा स्तोत्र का जाप करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।
3. संकट के समय में: जब भी जीवन में चुनौतियों, बाधाओं या खतरे का सामना करना पड़ता है, तो भक्त अक्सर भगवान शिव से सुरक्षा और मार्गदर्शन के लिए शिव रक्षा स्तोत्र की ओर रुख करते हैं।
4. दैनिक भक्ति अभ्यास: कई भक्त भगवान शिव का आशीर्वाद और सुरक्षा पाने के लिए, सुबह या शाम को, शिव रक्षा स्तोत्र के जाप को अपनी दैनिक आध्यात्मिक दिनचर्या में शामिल करते हैं।
5. महत्वपूर्ण कार्य करने से पहले: कुछ लोग किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को शुरू करने से पहले स्तोत्र का जाप करते हैं, सफलता और बाधाओं से सुरक्षा के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद मांगते हैं।

शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ कौन कर सकता है:

खराब स्वास्थ्य, पुरानी बीमारियों, नकारात्मक भावनाओं और शत्रु के अन्य भय से पीड़ित व्यक्तियों को नियमित रूप से वैदिक नियमों के अनुसार शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

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