Amlaki Ekadashi 2024 : कैसे करें अमालकी एकादशी के व्रत का पूर्ण फल प्राप्त? जानिए सही पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत का महत्व
Thu - Mar 14, 2024
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आमलकी एकादशी 2024 - पूजा विधि, महत्व, पारण समय, लाभ
आज हम इस ब्लॉग में जानेंगे कि एकदशी का व्रत रखने के बावजूद क्या कारण है कि आपको व्रत के फल की प्राप्ति नहीं हुई है? क्या है वो सही विधान जिससे हम अपने व्रत का पूर्ण फल प्राप्त कर सकते हैं?

सबसे पहले हम जानेंगे आमलकी एकादशी से जुड़ी कुछ जरूरी बातें.
1. आमलकी एकादशी का धार्मिक दृष्टिकोण से अर्थ
2. आमलकी एकादशी का महत्व
3. आख़िर क्यों है अमले का पेड़ का महत्व
4. आमलकी एकादशी व्रत कथा
5. आमलकी एकादशी व्रत को पूर्ण करने की विधि
6. आंवले के पेड़ की पूजा का रहस्य
7. एकादशी तिथि का समय और पारण का समय

आमलकी एकादशी का धार्मिक दृष्टिकोण से अर्थ (Meaning of Amlaki Ekadashi in Hindu Dharma)
पुराणों में फाल्गुन मास की एकादशी (आम्लकी एकादशी) पर अमले के वृक्ष की महिमा का वर्णन है।
फाल्गुन मासि शुक्लायां, एकादश्यां जनार्दन:।
वसत्यमाल्कीवृक्षे, लक्ष्म्या सह जगत्पति:।
तत्र संपूज देव्येषं शक्ति कुर्यात् प्रदक्षिणां।
उपोष्य मंज़ूरत् कल्पं, विष्णुलोके महीयते।।
अर्थ- फाल्गुन मास की एकादशी के दिन श्रीहरि नारायण अपनी अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी के साथ अमले के वृक्ष पर निवास करते हैं, इस श्लोक के अनुसार जो भी व्यक्ति है इस शुभ दिन आंवला वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करता है उससे लक्ष्मी- नारायण की विशेष कृपा प्राप्त होती है. जातक धन-दौलत से परिपूर्ण होता है और वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
अमालकी एकादशी 2024 तिथि (Amlaki Ekadashi 2024 Date & Time)
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 मार्च को दोपहर 12:21 पर शुरु होगी। इस तिथि का समापन 21 मार्च को सुबह 02:22 पर होगा।
उदयातिथि के आधार पर आमलकी एकादशी का व्रत 20 मार्च दिन बुधवार को रखा जाएगा और रंगभरी एकादशी भी 20 मार्च को है।
• पूजा मुहूर्त - सुबह 06.25 - सुबह 09.27
• आमलकी एकादशी का व्रत पारण - 21 मार्च 2024 , दोपहर 01.41 - शाम 04.07
आमलकी एकादशी पारण समय
आमलकी एकादशी का पारण 21 मार्च को किया जाएगा। हरिवासर प्रातः 08 बजे 58 मिनट पर समाप्त हो जाएगा और पारण समय दोपहर 01 बजे 41 मिनट से शाम 04 बजे तक 07 मिनट तक है। भक्तों को इस समय पारण करना चाहिए और व्रत को पूरा करना चाहिए।

आमलकी एकादशी का महत्व (Significance of Amlaki Ekadashi)
एक ऐसा दिन जिस दिन आँवला के पेड़ की पूजा व व्रत करने से जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के पश्चात स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
आख़िर क्यों है आँवले के पेड़ का महत्व
मनायतों के अनुसार जब पृथ्वी पर जीवन नहीं था और पृथ्वी जलमग्न थी। तब सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने कमल के पुष्प में बैठकर परब्रह्म की तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि उनकी आँखों से ईश-प्रेम के आसु तपकने लगे। इन आँसुओं से आँवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार आँवला का पेड़ सृष्टि में आया। श्री हरि विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को कहा कि ये पेड़ आपके आंसुओं से उत्पन्न हुए हैं इसलिए इनका हर अंग पूजनीय होगा।
ऑंवले के पेड़ की जड़ में श्री हरि विष्णु जी, तने में महादेव, ऊपरी भाग में ब्रह्मा जी, इसके फल में प्रजापति, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और टहनियों में मुनि व देवताओं का निवास माना जाता हैं।
आँवले के फल में काई चमत्कारिक गुण है। आँवले का सेवन करने से शरीर की पाचन शक्ति मजबूत रहती है और ये विटामिन सी से भरपूर होता है। जिससे बालों में और त्वचा में चमक बनी रहती है।
आमलकी एकादशी व्रत कथा (Amlaki Ekadashi Vrat Katha)
आमलकी एकादशी की कथा भी इस दिन की तरह चमत्कारिक है कि कैसे एक शिकारी के एकादशी की कथा सुनने मात्र से उसे अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म मिला। आइए आज हम ये कथा जानते हैं-
पौराणिक कथाओं के अनुसर चैत्रथ नाम का चंद्रवंशी राजा राज्य करता था। वह जिस राज्य में राज्य करता था वह धन-धान्य से परिपूर्ण था। वो इसलिए क्योंकि वहां के राजा विद्वान और धर्मी थे। उनकी प्रजा भी उनके साथ श्री हरि विष्णु जी की आराधना करती थी। हर एकदशी पर वे सब व्रत का पालन करते थे और राजा के साथ मंदिर में पूजा करते थे। एक दिन एक शिकारी वहाँ आया जो अत्यंत दुराचारी व पापी था। वह शिकार करके ही अपने घर परिवार का पेट भरता था। एक दिन उसे कुछ नहीं मिला तब उसने मंदिर भजन होते देखा तब वहाँ वही रात भर मंदिर के कोने से भजन सुनने लगा। प्रातः काल ही वो अपने घर को चला गया। घर पहुँचने के कुछ समय के पश्चात उसकी मृत्यु हो गई। उसके कर्मों के अनुसार तो उसे नरक लोक में जाना था परंतु एकादशी की कथा सुनने के प्रभाव से उसे अगला जन्म राजा के रूप में प्राप्त हुआ।
वह अपने अगले जन्म में विष्णु भक्त, सत्यवादी और कर्मवीर बना। एक दिन वह शिकार क्रीड़ा करने के लिए जंगल गया परंतु वो रास्ता भटक गया। बहुत प्रयास के बाद भी रास्ता ना मिलने के कारण वह थक गया और एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा। उस समय पहाड़ी से डाकू आए और राजा को अकेला देखकर 'मारो, मारो' कहकर उन पर हमला करने लगे। डाकू कहने लगे कि इस राजा ने हमारे माता-पिता, पुत्र और अनेक संबंधों को मारा और देश से निकाला था।
उनके कई प्रहार के बाद भी राजा को तनिक मात्रा भी चोट नहीं आई। और उनके प्रहार का उन पर उल्टा वार होने लगा जिससे वे मूर्छित हो गए। फिर एक दिव्य देवी राजा के शरीर से उत्पन्न हुई जिन्होनें डाकुओं का वध कर दिया।
निद्रा टूटने पर राजा सोचने लगा कि इनका वध किसने किया है? कौन है मेरा रक्षक?
उस के यह दयालु शब्द सुनकर एक आकाशवाणी हुई की-। हे! राजन इस संसार में श्री हरि विष्णु के अतिरिकत कौन तेरी सहायता कर सकता है।” यह सुन वो अपने नगर को चल दिया और भक्तिभाव के साथ श्री हरि विष्णु जी की आराधना करने लगा।
जो भी व्यक्ति इस परम दुर्लभ व्रत को करेगा और इस कथा का श्रवण करेगा वो अंत में विष्णुलोक 'बैकुंड' को जाएगा।
इस आमलकी एकादशी की कथा की यही महिमा है।
आमलकी एकादशी व्रत को पूर्ण करने की विधि (Amlaki Ekadashi Puja Vidhi)
1.आमलकी एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करें। स्नान के बाद श्री हरि विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प ले।
2.पूजा घर को साफ करके श्री हरि विष्णु और देवी लक्ष्मी का पंचामृत से स्नान करवाकर उन्हें पीले फूल अर्पित करें।
3.तत्पश्चात आँवले के पेड़ की पूजा करें और रोली, चंदन, अक्षत भी उन्हें अर्पण कर देवे।
4.आँवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणो को भोजन करवाएं और स्वयं केवल आवले से बने पदार्थों का ही सेवन करें।
5.कथा का वाचन करें और रात भर श्री हरि विष्णु जी का सिमरन कर भजन कीर्तन करें।
6.सूर्योदय के बाद व्रत पारण करें और तुलसी पर जल अर्पित करें।

व्रत का फल कैसे प्राप्त करें? (Benefits of Amlaki Ekadashi)
एकादशी व्रत करने के बाद व्रत का पारण किया जाए। अगर यह नहीं किया जाए तो व्रत के फल की प्राप्ति नहीं होती है।
पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक है जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान है।
हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने का सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत खोलना चाहिए।
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