लोहड़ी- महत्व, शुभ मुहूर्त, तिथि, पूजा विधि, लोक कथाएँ
Fri - Jan 12, 2024
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इस साल 2024 में लोहड़ी 14 जनवरी को मनाया जाएगा। ये त्यौहार मुख्यतः पंजाब, दिल्ली या हरियाणा में मकर संक्रांति के ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। ये शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है। इसमें ‘ल’ का अर्थ है लकड़ी ‘ओह’ का अर्थ है सूखे उपले और ‘ड़ी’ का मतलब यहां रेवड़ी से हैं।
लोहड़ी का त्यौहार किसानो द्वारा भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन वो अपनी ठंड में बोई हुई फसल की कटाई करने को तैयार होते हैं। वो ईश्वर को उनकी अच्छी फसल के लिए कृतज्ञता प्रकट करते हैं। किसान अपनी फसल का कुछ हिस्सा अपने गाँव में बाँट कर अपनी समृद्धि की कामना करता है।
लोहड़ी का धार्मिक महत्व
लोहड़ी के त्यौहार का विशेष महत्व है इस दिन जिसके भी घर पर विवाह हुआ हो या फिर संतान का जन्म हुआ हो वही सब लोग एकत्रित होकर लोहड़ी जलाते हैं। शाम के समय पर सभी एकट्ठा होकर लोहड़ी जलाते हैं और लोहड़ी की सात बार परिक्रमा लेते हैं। परिक्रमा लेते हुए लोहड़ी की पवित्र अग्नि में तिल, गुड़, चावल या भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इन सब सामग्री के मिश्रन को तिलचोली कहते हैं।

लोहड़ी का शुभ मुहूर्त या तिथि
इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी तो मकर संक्रांति के एक दिन पहले यानि 14 जनवरी को लोहड़ी मनाई जाएगी। इस वर्ष यह लोहड़ी बेहद ही शुभ संयोग के साथ आ रही है।
मुहूर्त - ब्रह्म मुहूर्त - प्रातः 05:27 बजे से प्रातः 06:21 बजे तक।
विजय उत्सव - दोपहर 2.15 बजे से 2.57 बजे तक।
गोधूलि बेला - शाम 5.42 बजे से शाम 6.09 बजे तक।
निशिता महोत्सव - रात्रि 12:03 बजे से रात्रि 12:57 बजे तक।
लोहड़ी मनाने की पूजा विधि
लोहड़ी मूलतः सिखों का त्यौहार है। इस दिन लोग घर के आंगन में अग्नि जलाकर लोहड़ी मनाते हैं। लोहड़ी को मकर संक्रांति और होली का संयुक्त रूप मन जाता है। इस पवित्र अग्नि में किसान अपनी कटी हुई फसल को भी अग्नि में अर्पित करते हैं , इसे वे अग्नि देव और अन्य देवी देवताओं को समर्पित करते हैं। इस पवित्र अग्नि के चक्कर लगते समय लोग अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं।
प्राचीन लोक कथाएँ
इस त्यौहार के साथ कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध लोक कथा के अनुसार, लोहड़ी के दिन एक जितेंद्रिय राजा और उसकी पत्नी दीर्घ ने अपनी प्रजा से ये विनती की वे अपने घरों को रात्रि में खुदाई करके दूध के गद्दे तैयार करे या उन्हें मीठा सा पानी डाले।
इस आदेश का पालन हुआ। जब दीर्घ ने अपने घर की खुदाई की, तब रात्रि में उसे कुछ विचलित जीव प्राप्त हुआ। उसे बाहर निकालने के पश्चात दीर्घ को आभास हुआ कि वो एक सर्प है, जो बहुत विचलित हो रहा है।
दीर्घ को ये एहसास हुआ कि अगर ये सर्प राज्य में रहा तो ये राजा के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है इसलिए उसने अपने राज्य से सर्प को भगा दिया। इस घटनाक्रम के पश्चात ही वहाँ के लोग इसे लोहड़ी के रूप में मनाने लगे।

लोहड़ी की पारंपरिक कहानी: धूप चढ़ाने का रहस्य
ये एक पारंपरिक कहानी है राम नाम के लड़के की। वह एक छोटे से गाँव में रहता था, लेकिन उसमें बहुत आत्मविश्वास था। उसकी पत्नी थी सीता, वे दोनों बहुत प्यार करते थे और इमानदार थे। उस गाँव में हर साल लोहड़ी का त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाया जाता था, वे वहाँ एकत्रित हो कर नृत्य करके या गीत गाकर लोहड़ी मनाते थे। राम सीता भी हमेशा जोड़े में यह त्यौहार मनाते थे। एक बार राम ने अलग तरह से त्यौहार मनाने की सोची। राम के पास बहुत सी युवतियाँ थी जो धूप चढ़ाने का काम करना चाहती थी। राम ने इन युवतियों को बुलाया और उन्हें कहा कि हम इस बार से नए तरीक़े से त्यौहार मनाएंगे, हम एक खास धूप चढ़ाएँगे सब युवतियाँ प्रसन्न हो गई और अपने काम लग गई। सबने अलग-अलग चीजें एकत्रित की और उन्हें एक बड़े से पौधे में रख दी। लोहड़ी के दिन जब सब वहां पहुँचे तो राम और युवतियों के हाथों में एक बड़ा सा पौधा था। राम ने सबको कहा कि ये पौधा सभी के प्यार, समर्पण और मेहनत का प्रतीक है। इसे जलाने से हम गांव के लोगों के जीवन में रगंत ला सकते हैं। उस दिन से गाँव वालों ने हर बार इसी तरह से लोहड़ी मनाई। और उस पोधे का नाम रामपोध रखा गया, जिसे लोग लोहड़ी के साथ जलाने लगे।
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