माघ पूर्णिमा 2024: शुभ मुहूर्त, महत्व और संगम स्नान का महत्व
Sat - Feb 17, 2024
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माघ माह में आने वाली पूर्णिमा को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन स्नान, दान और पूजन का विशेष महत्व है। ये माघ माह का अंतिम दिन होता है। माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से संतान, सुख, सौभाग्य, धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 2024 में माघ पूर्णिमा 24 फरवरी, शनिवार को मनायी जायेगी।
माघ पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
माघ पूर्णिमा की तिथि 23 फरवरी 2024 को दोपहर 3 बज कर 36 मिनट से आरंभ होगी और 24 फरवरी 2024 को शाम को 06 बज कर 3 मिनट पर समाप्त होगी।
उदया तिथि के अनुसार माघ पूर्णिमा 24 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी।
स्नान का शुभ मुहूर्त - सुबह 05 बज कर 11 मिनट से सुबह 06 बज कर 02 मिनट तक रहेगा।

माघ पूर्णिमा पूजा विधि
माघ पूर्णिमा में स्नान-दान-पूजा और व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से पितरों का तर्पण होता है। पूर्णिमा के दिन की पूजा विधि कुछ इस प्रकार है-
1.माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।
2.इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और सूर्य मंत्र का उच्चारण करें।
3.घर के मंदिर में दीया प्रज्वलित कर व्रत का संकल्प लें।
4.संध्याकाल में ब्राह्मणों और गरीब व्यक्तियों को भोजन करवाएं एवं उन्हें अपनी श्रद्धा-भक्ति व सामर्थ्य के अनुसार दान करें।
माघ माह में विशेष रूप से काले तिल का दान देना चाहिए।
माघ मास और पूर्णिमा का महत्व
हिंदू पांचांग के अनुसार माघ महीना साल का ग्यारहवाँ महीना होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं और मानव रूप में स्नान और जप करते हैं। इसीलिए इस दिन प्रयागराज के संगम में स्नान को इतना महत्व दिया जाता है। इससे व्यक्ति को मनोवांछित फल की और मोक्ष की प्राप्ति होती है।पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा करने और चंद्रमा की पूजा व अर्घ्य देने से व्रत पूर्ण होता है। माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास जयंती भी मनाई जाती है।

संगम स्नान का धार्मिक महत्व
माघ पूर्णिमा के समय प्रयागराज के संगम में स्नान करने का धार्मिक महत्व है। यह वह समय है जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
संध्या आरती एवं पूजन
माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान श्री हरि विष्णु और उनकी अर्द्धांगिनी माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। भक्तजन मंदिरों और अपने घरों में भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियों का श्रंगार करके श्रद्धा पूर्वक आरती करते हैं।
व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार धनेश्वर नाम का एक अति निर्धन ब्राह्मण कांतिका नगर में रहता था। भिक्षा में उसे जो भी प्राप्त होता था उससे ही वह गुजारा करता था। ब्राह्मण दम्पति की कोई भी संतान नहीं थी। गाँव के लोग उन्हें कई तरह के ताने सुनाते थे। एक दिन गाँव के लोगों ने ब्राह्मणी को बाँझ कह कर उन्हें भिक्षा देने से इंकार कर दिया। इस घटनाक्रम से ब्राह्मणी बहुत दुखी होकर रोने लगी। रोता हुआ देख कर उसे वहाँ किसी ने मां काली की आराधना करने को कहा। ब्राह्मण दम्पति ने 16 दिन तक सारे नियमानुसर माँ काली की आराधना की। उनकी श्रद्धा-भक्ति देखकर मां प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया। देवी ने कहा पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाना और हर आने वाली पूर्णिमा पर एक-एक दीपक बड़ा देना। पूनम के व्रत का पालन करते हुए कम से कम 32 दीपक जलाना।
ब्राह्मण दम्पति ने देवी के कहे अनुसार व्रत रखे और दीपक भी प्रज्वलित किये। देवी के आशीर्वाद से वह गर्भवती हुई और उसने एक बालक को जन्म दिया। उन्होंने उसका नाम देवदास रखा। परंतु देवदास अल्पायु था। कुछ समय के पश्चात उसे अपने मामा के साथ आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी भेज दिया गया।
काशी में एक दुर्घटना में देवदास का धोखे से विवाह करवा दिया गया। कुछ समय के बाद पूर्णिमा तिथि पर देवदास का काल उसे ले जाने आया। ब्राह्मण दम्पति ने देवदास के लिए व्रत रखा था, उस व्रत के प्रताप के कारण काल उसे लेकर नहीं जा पाया और देवदास को जीवनदान मिल गया।
इस घटनाक्रम के बाद से ही पूर्णिमा व्रत की शक्ति को लोगों ने जाना। इस व्रत के प्रभाव से संतानहीनों को संतान की प्राप्ति होती है, शत्रुओं का नाश होता है, जीवन सुखमय होता है, निर्धन धनी होता है।
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