महाशिवरात्रि 2024- तिथि/शुभमुह्रत, महत्त्व, रीति, कथा, पूजाविधि
Sat - Mar 02, 2024
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शिवरात्रि अर्थात शिव की रात्रि । शास्त्र के अनुसार, हर सोमवार का दिन शिव की पूजा के लिए उपयुक्त है। हर महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होती है। फाल्गुन में महीने में वही खास तिथि महाशिवरात्रि हो जाती है। फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 8 मार्च को मनाया जाएगा।

तिथि/शुभमुह्रत
8 मार्च 2024 को रात 9 बजकर 57 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 9 मार्च 2024 को शाम 6 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगा।
महाशिवरात्रि का महत्त्व
यह त्योहार उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो आध्यात्मिक पथ पर हैं, जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और जो सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखते हैं। तपस्वियों के लिए, यह वह दिन है जब भगवान शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए, और पारिवारिक परिस्थितियों में रहने वालों के लिए, इसे शिव की शादी की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रत्येक मनुष्य के भीतर उस विशाल शून्यता का अनुभव करने का अवसर है, जो समस्त सृजन का स्रोत है।इस दिन भगवान शिव के प्रतीक लिंगम की भी पूजा की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्ध इस प्रकार स्थित होता है कि मनुष्य में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा का उभार होता है। इस ऊर्जा का उपयोग ध्यान और साधना के माध्यम से किया जा सकता है, जिससे आध्यात्मिक विकास और भौतिक प्राप्ति हो सकती है। महाशिवरात्रि को ध्यान और साधना के लिए एक शुभ दिन माना जाता है, और यह परमात्मा से जुड़ने और भगवान शिव से आशीर्वाद लेने का समय है।
महाशिवरात्रि शिव तत्व का जश्न मनाने का समय है, जो शुद्ध चेतना का सिद्धांत है जो हर इंसान के भीतर मौजूद है। यह शिवोहम के शाश्वत सत्य को याद करने का एक अवसर है, जिसका अर्थ है 'मैं वह सिद्धांत हूं।' मैं शिव हूं. मैं सत्य, परोपकार, अनंत काल, सौंदर्य हूं'। महाशिवरात्रि मनाकर हम अपने भीतर से जुड़ सकते हैं और अपने भीतर परमात्मा का अनुभव कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि महान आध्यात्मिक महत्व का त्योहार है जो दुनिया भर में हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। यह परमात्मा से जुड़ने, भगवान शिव से आशीर्वाद लेने और अपने भीतर की विशाल शून्यता का अनुभव करने का समय है। इस दिन व्रत रखने, प्रार्थना करने और ध्यान करने से, हम ऊर्जा के प्राकृतिक उत्थान का उपयोग कर सकते हैं और आध्यात्मिक विकास और भौतिक प्राप्ति प्राप्त कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि से जुड़े कई अनुष्ठान और रीति-रिवाज हैं, जिनमें शामिल हैं:
उपवास : कई हिंदू महा शिवरात्रि पर उपवास रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति अपने शरीर और मन को शुद्ध कर सकता है और भगवान शिव के प्रति भक्ति प्रदर्शित कर सकता है।
पूजा : महा शिवरात्रि के दौरान विभिन्न पूजा या पूजा समारोह किए जाते हैं, जिनमें लिंग पूजा, बिल्व पत्र पूजा और रुद्राभिषेक पूजा शामिल हैं।
प्रसाद : भगवान शिव को फल, पत्ते, मिठाई और दूध का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
ध्यान और योग : कई हिंदू भगवान शिव से जुड़ने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए महा शिवरात्रि पर योग और ध्यान का अभ्यास करते हैं।
मंदिरों के दर्शन : हिंदू लोग महा शिवरात्रि पर शिव मंदिरों में जाकर प्रार्थना करते हैं और पूजा करते हैं।
रात में जागना : ऐसा माना जाता है कि महा शिवरात्रि पर पूरी रात जागने और भगवान शिव का ध्यान करने से बहुत आशीर्वाद मिल सकता है।

महाशिवरात्रि की कथा
प्राचीन काल में एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने कुटुम्ब का पालन पोषण करता था। एक रोज वह जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिन भर भागदौड़ करने पर भी उसे कोई शिकार प्राप्त न हुआ। वह भूख-प्यास से व्याकुल होने लगा। शिकार की बाट निहारता-निहारता वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर अपना पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को इस बात का ज्ञात न था।
पड़ाव बनाते-बनाते उसने जो टहनियां तोड़ी, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरी। शिकार की राह देखता-देखता वह बिल्व पेड़ से पत्ते तोड़-तोड़ कर शिवलिंग पर अर्पित करता गया। दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। इस तरह वह अनजाने में किए गए पुण्य का भागी बन गया।
रात्रि का एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘शिकारी मुझे मत मारो मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास वापिस आ जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।’
शिकारी को हिरणी सच्ची लगी उसने तुरंत प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई। कुछ समय उपरांत एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी बहुत खुश हुआ की अब तो शिकार मिल गया। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया।
मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे शिकारी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार अपने शिकार को उसने स्वयं खो दिया, उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे शिकारी ! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मार।’
शिकारी हंसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे शिकारी ! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।’
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,‘ हे शिकारी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

महाशिवरात्रि की पूजा में किन - किन चीजों का उपयोग करे
महाशिवरात्रि के दिन, हिंदू सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ कपड़े पहनकर शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिवलिंग की पूजा के लिए, निमन्लिखित सामग्री की अनिवार्यता होती है:
दुध
जल
गंगा जल
बेल पत्र
नशा
चमेली के फूल
शक्कर
मिश्री
नैव
महाशिवरात्रि के पूजा की विधि:
सबसे पहले, शिवलिंग को जल और गंगा जल से स्नान कराएं।
देवदार, शिवलिंग प्रति बेल पत्र, धतूरा, चमेली के फूल, शक्कर और मिश्री चढ़ाएँ।
नैवेद्य भगवान शिव को चढ़ाएं।
शिवलिंग की आरती करें।
अंत में, भगवान शिव से प्रार्थना करें।
महाशिवरात्रि के दिन जागरण करना भी पूर्ण मन जाता है। जागरण में, भगवान शिव के भजन गाये जाते हैं और कथाएं सुनायी जाती हैं।
उत्सव ऐप के साथ इस पावन दिन शिव मंदिर में पूजा करें। और शिव जी की असीम कृपा प्राप्त करे।
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