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षटतिला एकादशी 2024 : धार्मिक महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत पारण विधि अथवा विशेष व्रत की कथा

Sun - Feb 04, 2024

5 min read

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एकादशी का व्रत सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक हैं। माना जाता है इस दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रत्येक एकदशी का अपना-अपना महत्व है। वेसे ही माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष ये एकादशी 6 फरवरी 2024 को आएगी। एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की विधि से पूजा और व्रत करने का विधान है। षटतिला एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु को तिल का भोग लगाया जाता है और तिल का दान भी किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूजा और उपवास करके आप अपने पापों के लिए क्षमा मांग सकते हैं और अपने जीवन में सौभाग्य को आमंत्रित कर सकते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति ये व्रत नहीं करता है और सिर्फ़ कथा सुनते है उन्हें भी इसका लाभ मिलता है।

षटतिला एकादशी मुहूर्त व पूजा विधि

तिथि समय- हिंदू पंचांग के अनुसार षटतिला एकादशी 05 फरवरी 2024 को शाम 05 बजकर 24 मिनट पर आरंभ होगी और 06 फरवरी को शाम 04 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगी। इस वर्ष 06 फरवरी को एकदशी मनायी जायेगी।

शुभ मुहूर्त- श्री हरि की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 06 फरवरी को 09 बजकर 51 मिनट से दोपहर 01 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।


पूजा विधि-
1.एकादशी के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है वो है-
2.तिल स्नान
3.तिल का उबटन
4.तिल का हवन
5.तिल का भोजन
6.तिल का दान, और
7.तिल का तर्पण



विधि-

1.एकादशी के दिन सूर्योदय के पूर्व स्नान करें और अपनी इंद्रियों को काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को वश में करके श्री हरि विष्णु का स्मरण करें।
2.षटतिला एकादशी के दिन तिल का उबटन लगकर और पानी में तिल को मिलाकर उसमें से स्नान करें।
3.स्नान करने के लिए मंदिर में दीप प्रज्वलित करके व्रत का संकल्प लें।
4.इस दिन तिल का दान का भी विशेष महत्व है। जातकों द्वारा जितना भी तिल का दान किया जाता है उतने ही हजार वर्ष तक उसे स्वर्ग में स्थान मिलता है।

व्रत पारण विधि -

1.एकादशी व्रत के नियमों का पालन करने के पश्चात दूसरे दिन अपना व्रत छोड़े।
2.स्नान के बाद श्री हरि विष्णु के सामने दीप प्रज्वलित कर के उन्हें खिचड़ी का भोग लगाएँ।
3.नारियल या सुपारी का अर्घ्य देकर श्री हरि विष्णु की स्तुति करें।
4.अर्घ्य देने के बाद पंडितजी या ब्राह्मण को दान दे।
5.इस परम दुर्लभ व्रत को करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी का महत्व-
सनातन धर्म में षटतिला एकादशी का बहुत महत्व है। इस व्रत को विधि पूर्ण करने से व्रती के घर में सुख शांति का वास होता है।

इस पवित्र दिन तिल का ६ प्रकार से उपयोग किया जाता हैं इसलिए षटतिला एकादशी कहा गया है। यह दिन विष्णु जी को समर्पित है। इस दिन व्रत रख कर विष्णु जी की पूजा करना और तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। श्री हरि विष्णु की कृपा व्रत करने वाले जातकों पर सदेव बनी रहती हैं। 

कुछ विशेष मंत्र -

वे मंत्र जिनका जाप एकादशी के दिन करने से श्री हरि विष्णु जी की असीम कृपा प्राप्त होती हैं, वे मंत्र हैं-

ॐ विष्णवे नम:।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:।
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः


व्रत कथा-

षट्तिला एकादशी की कथा के अनुसार प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वो ब्राह्मणी सदेव व्रत किया करती थी। एक बार उसका विचार आया कि वह एक महीना व्रत करेगी। इस व्रत रखने के परिणामस्वरूप उसका शरीर काफ़ी कमजोर हो गया। ब्राह्मणी ने अपने जीवनकाल में व्रत तो काफी किए लेकिन कभी भी ज़रूरतमंदों को दान नहीं किया। उसके व्रत से प्रसन्न होकर श्री हरि विष्णु ने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत तो काफी किया है जिसके परिणामस्वरूप इसने अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, जिसे इसे विष्णुलोक मिल ही जाएगा लेकिन इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, जिससे इसकी तृप्ति होना मुश्किल है।
फिर श्री हरि विष्णु ने भिखारी का रूप लेकर उस ब्राह्मणी के पास पहुँचे और भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने उनसे पूछा हे महाराज आप कौन हैं और आपको क्या चाहिए? श्री हरि ने कहा- मुझे भिक्षा चाहिये। ब्राह्मणी ने विचार किया उसके पश्चात उसने एक मिट्टी का ढेला उनके भिक्षापत्र में डाल दिया। श्री हरि विष्णु उसे लेकर स्वर्गलोक आ गये। कुछ समय के बाद ही ब्राह्मणी ने भी अपना देह त्याग दिया और स्वर्गलोक आ गई।
उस ब्रह्माणी को अपनी श्री हरि के प्रति भक्ति और उपवास के फलस्वरूप स्वर्ग प्राप्त हुआ और मिट्टी दान करने से एक सुंदर महल मिला, परंतु उसके घर में अन्नादि सब सामग्री को शून्य पाया। वह विचलित हो उठी और श्री हरि विष्णु से पूछने लगी कि भगवान मैंने सच्ची श्रद्धा भक्ति से आपके अनेक व्रत किए, आपका पूजन किया फिर भी मेरा घर खाली है, ऐसा क्यों है भगवन?
इस पर श्री हरि विष्णु जी ने जवाब दिया कि तुमने अपने जीवन काल में कभी किसी वास्तु का दान नहीं किया, जो भी मनुष्य मृत्युलोक में जो भी दान करता है वही वह इस स्वर्ग लोक में पाता है। यह सुन वह अत्यंत विलाप करने लगी। उसे रोता हुआ देख श्री हरि विष्णु जी ने कहा- उठो और अपने घर को जाओ वहाँ कुछ देवस्त्रियां आएंगी उनसे तुम षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुनकर ही द्वार खोलना। यह सुनकर वो अपने घर को गई। जब देव स्त्री आई तब ब्रह्माणी ने कहा आप मुझे षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो। तब एक देवस्त्री ने उसे माहात्म्य सुनाया फिर उसने अपना द्वार खोला।
दरवाज़ा खुलने के बाद उन्होंने देखा कि वो ना तो गंधर्वी है ना ही आसुरी वे तो पहले जेसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने कथानुसर षटतिला एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से वो रूपवती हो गई और उसका घर अन्न इत्यादि से परिपूर्ण हो गया। इसलिए आज भी यही कहा जाता है कि मनुष्य को यह व्रत अपना लोभ और अहंकार को त्याग करना चाहिए। इस दिन तिल का दान करने का विशेष महत्व है। इससे मनुष्य को सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और उन्हें मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

उत्सव ऐप के साथ इस पावन दिन पूजा करें।

उत्सव ऐप एक आध्यात्मिक मंच है जो आपको आध्यात्मिक जड़ों से जोड़कर रखता है। षटतिला एकादशी की कथा के अनुसार मरने के बाद आपको अपने दान और धार्मिक गतिविधियों के अनुसार ही आपको सब कुछ प्राप्त होता है। अगर आप भी अपनी जीवनशैली में व्यस्त हैं और धार्मिक विधियाँ करना चाहते हैं तो उत्सव ऐप द्वारा की जाने वाली पूजा में आप भाग ले सकते हैं। पंडितजी आपके नाम और गोत्र लेकर पूजा करेंगे और वीडियो आपको व्हाट्सएप पर भेजा जाएगा। प्रसाद भी आपके घर तक पहुँचाया जाएगा।
उत्सव ऐप द्वारा आप बांके बिहारी, वृन्दावन मंदिर में एकादशी के दिन पूजा की बुकिंग करवा सकते हैं। पूजा बुक करवाने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें।

लिंक- www.utsavapp.in/kriya





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