शरद पूर्णिमा, 2024 तिथि, समय और महत्व
बुध - 16 अक्टू॰ 2024
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शरद पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा न केवल भक्तिभाव से जुड़ा एक पर्व है बल्कि यह स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है।
विषय सूची-
1. शरद पूर्णिमा: आध्यात्मिकता, परंपरा और महत्त्व
2. शरद पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्त्व
3. देवी लक्ष्मी की पूजा
4. शरद पूर्णिमा और रासलीला
5. धार्मिक परंपराएँ
6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

शरद पूर्णिमा: आध्यात्मिकता, परंपरा और महत्त्व
शरद पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और यह हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
शरद पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्त्व
शरद पूर्णिमा को चंद्रमा अपने पूर्ण रूप में दिखाई देता है। माना जाता है कि इस दिन इसकी रोशनी में विशेष ऊर्जा होती है। मान्यता के अनुसार इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
इस रात को खुले आसमान के नीचे दूध और चावल की खीर बनाकर रखने की परंपरा है जिसे सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि चंद्रमा की किरणों से खीर में विशेष औषधीय गुण आ जाते हैं।
देवी लक्ष्मी की पूजा
शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्त्व है। यह रात कोजागरी पूर्णिमा भी कहलाती है, जिसका अर्थ है 'कौन जाग रहा है'।
मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो लोग जागरण करके उनकी पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
व्यापारियों के लिए यह दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि यह धन और समृद्धि से जुड़ा हुआ है।
शरद पूर्णिमा और रासलीला
शरद पूर्णिमा का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू भगवान कृष्ण और राधा की रासलीला है। यह रात कृष्ण और गोपियों के रास के रूप में भी जानी जाती है जहां भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ नृत्य किया था।
वृंदावन और मथुरा में इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है, और वहां भव्य रासलीला कार्यक्रम होते हैं।
धार्मिक परंपराएँ
इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं और रात में जागरण करते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
कई स्थानों पर भजन-संध्या और कथा का भी आयोजन होता है। शरद पूर्णिमा की रात को खुले में बैठकर चंद्र दर्शन और पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के निकटतम होता है और उसकी किरणों का प्रभाव अधिक होता है। यह दिन मौसम के बदलाव का भी संकेत देता है, जब बारिश के बाद की ठंडक का अनुभव होता है।
शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें प्रकृति की महत्ता और चंद्रमा के प्रभाव को समझने का अवसर प्रदान करता है।
इस दिन का पालन श्रद्धा और उत्साह के साथ किया जाता है, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। शरद पूर्णिमा न केवल भक्तिभाव से जुड़ा पर्व है, बल्कि यह स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है।
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