स्वामी सुब्रह्मण्य कौन है? - इतिहास, जन्म कथा, स्कंद षष्ठी और मूल मंत्र
शुक्र - 22 सित॰ 2023
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स्वामी सुब्रह्मण्य को भगवान सुब्रह्मण्य, स्वामी स्कंद, या कार्तिकेय भी कहा जाता है। वे हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं। वे भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र और देवसेनापति के रूप में माने जाते हैं। भगवान सुब्रह्मण्य के बारे में हिन्दू पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से जानकारी दी गई हैं परंतु आज हम स्वामी सुब्रमण्य की जीवन कथाएं सरल शब्दों में जानेंगे।
भगवान सुब्रह्मण्य का जन्म कैसे हुआ? भगवान सुब्रह्मण्य का जन्म मां पार्वती के तीसरे संतान के रूप में गंगा के तट पर हुआ था। उनका नाम "कुमार" था, और उन्हें विभूति या शब्दवाणी के देवता के रूप में माना जाता है। गौरीपुत्र श्री सुब्रह्मण्य का जन्म कार्तिक मास के पूर्णिमा तिथि पर हुआ था, जिसे "कार्तिक पूर्णिमा" के रूप में जाना जाता है। इस दिन, हिन्दू धर्म के अनुसार उनकी पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।स्वामी सुब्रह्मण्य के कवच और मंत्र उनकी पूजा और साधना के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ये कवच और मंत्र उनके भक्तों को सुरक्षा और सफलता दिलाने में मदद करते हैं।
स्वामी सुब्रह्मण्य का वाहन मायूर होता है, जिसे पक्षिराज के रूप में जाना जाता है। भगवान सुब्रह्मण्य के कई अन्य नाम भी है जैसे अक्षयकुमार क्योंकि उनका शरीर अक्षय (अमर) था। भगवान सुब्रह्मण्य को तारकासुर के संहार के लिए जाना जाता है। तारकासुर एक राक्षस थे और उनका वध करना देवताओं के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि तारकासुर श्रृष्टि और स्वर्ग की शांति भंग कर रहा था। उन्होंने तारकासुर को मारकर देवताओं को मुक्त किया और स्वर्ग में शांति लाया। गौरीपुत्र श्री सुब्रह्मण्य की कथाएँ स्कंद पुराण में मिलती हैं, जो उनके जीवन और कार्यों का विवरण प्रदान करता है। भगवान श्री सुब्रह्मण्य के एक प्रसिद्ध धाम हैं जिन्हें "सिम्बल" कहा जाता है। यह दक्षिण भारत में स्थित है और उनके पूजन का महत्वपूर्ण स्थल है। भगवान श्री सुब्रह्मण्य का पूजन हिन्दू धर्म में विशेष रूप से दक्षिण भारत में किया जाता है। उनका पूजन ब्रह्मचारी रूप में किया जाता है और व्रत रखा जाता है। स्वामी श्री सुब्रमण्य को विद्वान देवताओं में से एक देवता माना जाता है और उनके जीवन की कथाएँ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ हर एक मनुष्य को प्रेरित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। स्वामी सुब्रह्मण्य को युद्ध के देवता, ज्ञान के प्रतीक, और उद्धारण के प्रतीक के रूप में माना जाता है, और उनकी पूजा और ध्यान से भक्त उनके आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं।
भगवान सुब्रह्मण्य को प्रसन्न करने का मंत्र क्या है?
भगवान सुब्रह्मण्य के प्रतिष्ठित मंत्र हैं जिन्हें उनकी पूजा और ध्यान में जाप किया जा सकता है। यहां एक प्रमुख मंत्र है:
ॐ सरवाबलमाहाकुमाराय फट्।(Om Sarvabalmahakumaraya Phat)
यह मंत्र भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा प्राप्ति और सुरक्षा के लिए उच्चारण किया जाता है। आपको इस मंत्र को ध्यानपूर्वक और श्रद्धा भाव से जपना चाहिए। इसके अलावा, आप भगवान सुब्रह्मण्य के अन्य मंत्रों को भी जाप कर सकते हैं, लेकिन मंत्रों का जाप करने से पहले आपको अपने गुरु या साधना के अनुसार सुझाव लेना चाहिए क्योंकि मंत्रो का हमारे जीवन में गहरा प्रभाव पढ़ता है । मंत्रो द्वारा ही हम अपने इष्ट या अपने प्रभु तक पहुंच सकते हैं और उन्हें अपनी भक्ति से अवगत करवा सकते हैं।
स्वामी सुब्रमणय का जन्मदिन - स्कंद षष्ठी का महत्व
स्कंद षष्ठी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक पर्व है, जिसे लोग भगवान कार्तिकेय (स्कंद) के जन्म दिन के रूप में मनाते हैं। यह पर्व आमतौर पर कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो कार्तिक मास के छठे दिन होती है। इस दिन भक्तगण व्रत, पूजा, और भजन-कीर्तन करते हैं और भगवान कार्तिकेय की आराधना करते हैं। यह पर्व भारत के विभिन्न भागों में विशेष रूप से दक्षिण भारत में प्रमुखतः मनाया जाता है। स्कंद षष्ठी के दिन भगवान सुब्रह्मण्य को यज्ञोपवीत और पूजन के रूप में बलि अर्पण करना महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन उनके जन्म की महत्वपूर्ण तिथि है और उनके पूजन का विशेष महत्व होता है। किसी पूजा को विधि पूर्वक करना अति आवश्यक होता है क्योंकि जब पूजा उचित विधि से की जाती है तभी उसका लाभ मिला है। स्कंद षष्ठी को भी विधि पूर्वक करना आवश्यक होता है क्योंकि ऐसा करने से आप भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं।
स्कंद षष्ठी की पूजन विधि
पूजा के दिन घर के सभी सदस्य गंगा स्नान करें।
तत् पश्चात पूजा स्थल तैयार करें एक पवित्र स्थान पर भगवान सुब्रह्मण्य की मूर्ति या छवि को स्थापित करें। भगवान सुब्रह्मण्य की मूर्ति को पुष्पांजलि, दूध, दही, घी, तिल, जल, गंगाजल, गुड़, और पानी से अभिषेक करें। मंगल आरती करें और फूल, दीपक, धूप, और नैवेद्य चढ़ाएं। भगवान सुब्रह्मण्य के मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ सरवाबलमाहाकुमाराय फट्।" और "ॐ शारवणभवाय नमः। भजन और कीर्तन के द्वारा भगवान सुब्रह्मण्य की महिमा का गान करें। स्कंद षष्ठी के महत्व को समझने के लिए उनके जीवन की कथा को सुनें या पढ़ें। पूजा के बाद प्रासाद तैयार करें और उसे भगवान की कृपा के साथ बांटें। स्कंद षष्ठी पूजा भगवान सुब्रह्मण्य के प्रति आपकी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक होता है और यह व्रत आपके जीवन में सुख, समृद्धि, और सम्पत्ति की प्राप्ति में मदद कर सकता है।
स्वामी सुब्रमण्य से जुड़ी मान्यताएं
भगवान सुब्रह्मण्य को योद्धा और वीरता के देवता के रूप में माना जाता है। माना जाता है कि उन्होंने राक्षस तारकासुर और अन्य दुर्जन शक्तियों को नष्ट किया जो की बुराई पर अच्छाई के जीत का प्रतीक हैं। भगवान सुब्रह्मण्य को भगवान गणेश के बड़े भाई के रूप में माना जाता है। यह संबंध ज्ञान और शिक्षा की ओर और शक्ति और वीरता की ओर की संतुलन की प्रतीक्षा करता है (जिसका प्रतीकण गणेश द्वारा किया जाता है)। उन्हें अक्सर युवाओं की तरुणता के साथ जोड़ा जाता है और उन्हें शिक्षा और ज्ञान के अध्यापक के रूप में माना जाता है। छात्र अक्सर अपने अध्ययन में सफलता पाने के लिए उनकी कृपा मांगते हैं। भगवान सुब्रह्मण्य खासकर दक्षिण भारत में प्रसिद्ध हैं, जहां उनके लिए कई मंदिर हैं। उनकी पूजा के लिए तमिलनाडु में अरुपदैवीदू (छः मंदिर) खासी महत्वपूर्ण है। भगवान सुब्रह्मण्य को अक्सर छः मुख और बारह हाथों के साथ दिखाया जाता है, जो उनकी दिव्य गुणों और शक्तियों का प्रतीक होता है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुणों को दर्शाता है, जैसे ज्ञान, वीरता, और दया। स्कंद षष्ठी, भगवान सुब्रह्मण्य को समर्पित छः दिनों का त्योहार होता है, जिसे उनके भक्तगण बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस त्योहार के दौरान विशेष प्रार्थनाएँ, उपवास, और प्रदर्शन होते हैं। कावड़ी अटवाई भगवान सुब्रह्मण्य के त्योहारों के दौरान प्राप्त पूजनीय विधि है। भक्त अपनी भक्ति और समर्पण के प्रतीक के रूप में एक कावड़ी लेकर चलते हैं, जो एक सजीव व्रत और अर्पण का प्रतीक होता है। इस अवसर पर वे अक्रूर सामग्री से अपने शरीर को गुदड़़वाते हैं, जो तपस्या और त्याग का एक प्रकार होता है। स्वामी सुब्रह्मण्य के भक्तगण अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं, जैसे कि चुनौतियों को पार करना, ज्ञान प्राप्ति, और आध्यात्मिक विकास।
स्कंद षष्ठी से क्या लाभ होता है ?
स्कंद षष्ठी का आध्यात्मिक उद्देश्य है दुर्गतियों, बुराइयों, और कठिनाइयों को दूर करना। भगवान सुब्रह्मण्य के आशीर्वाद से भक्तों की जीवन में सुख और समृद्धि आ सकती है।उन्हें शिक्षा और ज्ञान के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है, इसलिए छात्र इस त्योहार के दौरान अपने अध्ययन में सफलता प्राप्त करने की कामना करते हैं। स्कंद षष्ठी के मनाने से भक्त अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उन्नति की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। स्कंद षष्ठी के दौरान भक्त अपने आप को दिव्यता की ओर समर्पित करते हैं, जो उनके आत्म-समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है। यह त्योहार भक्तों को आध्यात्मिक विचारों और धार्मिक अनुभवों के लिए एक अद्वितीय संवाद का मौका प्रदान कर सकता है, जिससे वे अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण को विकसित कर सकते हैं। स्कंद षष्ठी को मनाने से भक्तों को उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आध्यात्मिक सुधार में मदद मिल सकती है। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जिसे भक्त भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए मानते हैं।
कब आती है स्कंद षष्ठी और इसे मानने का प्रमुख समय क्या है?
स्कंद षष्ठी हर मास आती है। जब पंचमी तिथि समाप्त होती है या षष्ठी तिथि सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच शुरू होती है तो पंचमी और षष्ठी दोनों संयुग्मित होती हैं और इस दिन को स्कंद षष्ठी व्रत के लिए चुना जाता है। इस नियम का उल्लेख धर्मसिंधु और निर्नयसिंधु में किया गया है। तमिलनाडु के मुरुगन मंदिरों में एक ही नियम का पालन किया जाता हैं और षष्ठी तिथि से एक दिन पहले सूर्यसंहारम दिवस मनाया जाता है यदि पिछले दिन षष्ठी तिथि को पंचमी तिथि के साथ जोड़ा जाता है। यद्यपि सभी षष्ठी भगवान मुरुगन को समर्पित हैं, लेकिन चंद्र मास कार्तिका के दौरान शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भक्त छह दिनों का उपवास रखते हैं जो सूर्यसंहारम के दिन चलता है। सूर्यसंहारम के अगले दिन को तिरु कल्याणम के नाम से जाना जाता है।
सितंबर में स्कंद षष्ठी व्रत भाद्रपद, शुक्ल पक्ष षष्ठी पर रखा जाएगा व्रत का का शुभ मुहूर्त - बुधवार, 20 सितंबर दोपहर 2:16 बजे से शुरू होकर 21 सितंबर दोपहर 2:15 बजे तक रहेगा।
स्वामी सुब्रह्मण्य के प्रमुख मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर बेंग्रुलू में भी उपस्थित है। आप स्वामी सुब्रह्मण्य के मंदिर में उत्सव आप के द्वारा ऑनलाइन पूजा बुक करा सकते हैं।
उत्सव एप की तरफ से आपको और आपके परिवार को स्कंद षष्ठी की हार्दिक शुभकामनाएं। हम आशा करते है स्वामी सुब्रह्मण्य आपको हर कार्य में सफलता प्राप्त करने का आशीर्वाद प्रदान करे।
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