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श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम्‌ - सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और पढ़ने के लाभ

मंगल - 02 अप्रैल 2024

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ऋण मोचक मंगल स्तोत्रम एक संस्कृत भजन है जो भगवान मंगल को समर्पित है, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में मंगल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना ऋषि दुर्वासा ने की थी। शब्द "रिन मोचक" का अनुवाद "ऋण मुक्तिकर्ता" है, जो दर्शाता है कि इस स्तोत्र का पाठ ऋणों को कम करने के लिए माना जाता है, चाहे वे वित्तीय, आध्यात्मिक या कर्म प्रकृति के हों। मंगल हिंदू ज्योतिष में नवग्रहों (नौ खगोलीय पिंडों) में से एक है और इसे एक महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मंगल की उचित शांति से साहस, जीवन शक्ति, ऊर्जा और दुर्घटनाओं और दुश्मनों से सुरक्षा जैसे लाभ मिल सकते हैं।

Rin Mochak ऋण मोचक मंगल स्तोत्र

मंत्र

श्री मङ्गलाय नमः ॥

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12॥

॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

मंत्र का अर्थ

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावरोधकः॥
अर्थ: हे मंगल देव! शास्त्रों में आपके जो नाम बताये गए हैं, उनमें पहला नाम मंगल, दूसरा भूमिपुत्र, जिनका जन्म पृथ्वी से हुआ, तीसरा ऋणहर्ता यानी कर्ज से मुक्ति दिलाने वाला, चौथा धनप्रद यानी धन को देने वाले, पांचवां स्थिरासन यानी जो अपने आसन पर अड़िग रहते हैं, छठा महाकाय यानी जो बहुत बड़े शरीर वाले हैं, सातवां नाम सर्वकमावरोधक यानी कार्य में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने वाला है।

लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपके नामों में आठवां नाम लोहित, नवा लोहितांग, दसवां सामगानां यानी कृपा करने वाले, जिसका अर्थ सामग ब्राह्मणों के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि को रखने वाला है, ग्यारहवां धरात्मज यानी पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न होने वाला, बारहवां कुज, तेरहवां भौम, चौदहवां भूतिद यानी ऐश्वर्या को देने वाला, पंद्रहवां भूमि नंदन यानी पृथ्वी को आनन्द देने वाला है।

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
वृष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपके नामों में सोलहवां नाम अंगारक, सत्रहवां यम, अठारवां सर्व रोग पहारक अर्थात समस्त तरह की कठिनाइयों को दूर करने वाला, उन्नीसवां वृष्टिकर्ता अर्थात वृष्टि करने वाले यानी वर्षा कराने वाला, बीसवां नाम वृष्टिहर्ता अर्थात बारिश न कर अकाल लाने वाला और इक्कीसवां नाम सर्वकाम फलप्रदा अर्थात संपूर्ण कामनाओं का फल को देने वाला है।

एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥
अर्थ: हे मंगल देव!जो मनुष्य आपके इन इक्कीस नाम का वाचन सच्चे मन और विश्वास से करता है, उस मनुष्य के ऊपर कभी ऋण यानी कर्ज नहीं होता है और वो अथाह धन की प्राप्ति करता है।

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहरतं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपकी उत्पत्ती पृथ्वी के गर्भ से हुई है, आपकी आभा आकाश में कड़कने वाली दामिनी (आकाश में चमकने वाली बिजली) के समान है। सभी तरह की शक्ति को धारण करने वाले कुमार मंगलदेव को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूं।

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपके मंगल स्तोत्र का पाठ मनुष्य को हमेशा अपने मन में किसी भी तरह के विकार को दूर कर एवं अपनी पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था के साथ करना चाहिए। जो भी मनुष्य इस मंगल स्तोत्र का पाठ करता हैं और दूसरों को सुनाता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

अङ्गारक! महाभान! भगवन्! भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥
अर्थ: हे अंगारक अर्थात अग्नि की ज्वाला से जलने वाले! महाभाग अर्थात पूजनीय, ऐश्वर्यशाली, भक्तों के प्रति वात्सल्य यानी प्रेम रखने वाले आपको हम नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं। आप हमारे ऊपर किसी दूसरे से लिया हुआ उधार को पूर्ण करवा कर्ज को हमेशा के लिए दूर कर दीजिए।

ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यवः।
भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥
अर्थ: हे मंगल देव! मेरे ऊपर किसी दूसरे का कोई बकाया हो तो उसे समाप्त कर दीजिए, किसी भी तरह की व्याधि हो तो उसको भी दूर कर दीजिए। हे मंगल देव, मेरी गरीबी को दूर कर अकाल मृत्यु के भय को दूर कीजिए। मुझे किसी भी तरह का डर, क्लेश और मन में दुःख हो तो उसे भी हमेशा के लिए दूर कर दीजिए।

अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपको संतुष्ट करना बहुत ही कठिन है, आप तो मुश्किल से प्रसन्न होने वाले भगवान मंगल देव हैं, आप जब किसी पर अपनी कृपा की बारिश करते हैं तो उसे समस्त प्रकार के सुख-समृद्धि देते हैं। जब आप किसी पर नाराज होते हैं तो उसकी सार्वभौम सत्ता को तहस-नहस कर देते हैं।

विरिञ्च-श्क्र-विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥
अर्थ: हे महाराज! आप जब भी किसी से नाराज होते हैं, तो अपनी अनुकृपा दृष्टि से उसे हीन कर देते हैं। आप नाखुश होने पर ब्रह्माजी, इन्द्रदेव और विष्णुजी के भी साम्राज्य, संपत्ति को नष्ट कर सकते हैं, मेरे जैसे मनुष्य की तो बात ही क्या है। आप सबसे शक्तिशाली और सबसे बड़े राजा हैं।

पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गताः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥
अर्थ: हे भगवान! आप से प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे संतान के रूप में पुत्र प्रदान करें, मैं आपके द्वार पर आया हूं, आप मेरी मनोकामना को पूर्ण करें। मेरे ऊपर किसी तरह से भी किसी दूसरे से उधार लिया हुआ धन न रहे, मुझे कभी दूसरों के आगे हाथ फैलाना न पड़े, मेरी गरीबी को दूर कीजिए और मेरे सभी तरह के कष्ट और क्लेश का नाश कीजिए, जो मेरे दुश्मन बन चुके हैं, उनके डर से मुझे आप मुक्त कराएं।

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥
अर्थ: जो भी मनुष्य इन बारह श्लोकों वाले ऋणमोचक मंगल स्तोत्र से मंगल देव की वंदना करता है, उस मनुष्य पर मंगल भगवान खुश होकर उसे धन-धान्य प्रदान कराते हैं। वह मनुष्य कुबेर भगवान की तरह धन-संपत्ति का स्वामी बन जाता है। वो मनुष्य हमेशा युवा रहता है।

॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम्‌ के लाभ

रिन मोचन मंगल स्तोत्र" के लाभ कुछ इस प्रकार हैं:

1. ऋण मोचन
2. धन लाभ
3. संतान की प्राप्ति
4. कल्याणकारी
5. आत्मिक विकास

स्तोत्र का जाप कैसे करें ?

ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का जाप करने के लिए इन चरणों का पालन करें:

तैयारी: एक शांत और साफ जगह ढूंढें जहां आप बिना किसी परेशानी के आराम से बैठ सकें।
शुद्धि: जप शुरू करने से पहले हाथ-मुंह धोकर खुद को शुद्ध करने की प्रथा है।
मानसिक तैयारी: अपने मन से विकर्षणों को दूर करें और जप के लिए अपना इरादा निर्धारित करें। आप कर्ज से राहत पाने या साहस और सुरक्षा के लिए भगवान मंगल का आशीर्वाद लेने पर ध्यान केंद्रित करना चाह सकते हैं।
जप शुरू करें: ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का श्रद्धा और ईमानदारी से पाठ करें। यदि आप संस्कृत से अपरिचित हैं, तो आप या तो एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सुन सकते हैं और उसके बाद दोहरा सकते हैं या अपनी समझ में आने वाली भाषा में स्तोत्र का लिप्यंतरण या अनुवाद का उपयोग कर सकते हैं।
एकाग्रता: जप करते समय अपना ध्यान श्लोकों के अर्थ पर केंद्रित करें। अपने भीतर शब्दों की गूंज महसूस करें और भगवान मंगल की कृपा आप पर बरसती हुई कल्पना करें।
प्रसाद (वैकल्पिक): यदि आप चाहें तो श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक के रूप में जप करते समय फूल, धूप या दीपक चढ़ा सकते हैं।
समापन: जप पूरा करने के बाद, आपकी प्रार्थना सुनने के लिए भगवान मंगल के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए कुछ समय निकालें।
चिंतन: स्तोत्र के महत्व और आपके जीवन पर इसके प्रभाव पर विचार करते हुए कुछ क्षण मौन चिंतन में बिताएं।
नियमित अभ्यास: सर्वोत्तम परिणामों के लिए, ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का जाप एक नियमित अभ्यास बनाएं। आप इसका जाप प्रतिदिन या मंगल ग्रह से जुड़े विशिष्ट दिनों, जैसे मंगलवार, पर कर सकते हैं।

श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम्‌ का जाप कौन कर सकता है और कब करना चाहिए?

ऋण मोचक मंगल स्तोत्रम का जाप कोई भी व्यक्ति कर सकता है जो कर्ज से राहत पाना चाहता है, चाहे वे वित्तीय, आध्यात्मिक या कर्म प्रकृति के हों। लिंग, उम्र या जाति के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं। स्तोत्र प्रार्थना और भक्ति का एक रूप है, और सच्चे इरादे वाला कोई भी व्यक्ति इसका जाप कर सकता है।

ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का जाप कब करना चाहिए, इसके लिए यहां कुछ सामान्य सुझाव दिए गए हैं:

मंगलवार: मंगलवार पारंपरिक रूप से भगवान मंगल (मंगल) से जुड़ा हुआ है। बहुत से लोग भगवान मंगल का आशीर्वाद पाने और उनकी सुरक्षा पाने के लिए मंगलवार को इस स्तोत्र का जाप करना चुनते हैं।
मंगल होरा के दौरान: हिंदू ज्योतिष में, शुभ घंटों की एक अवधारणा है जिसे "होरा" के नाम से जाना जाता है। मंगल होरा दिन के उस समय को संदर्भित करती है जिस पर मंगल का शासन होता है। इस दौरान भगवान मंगल की ऊर्जा का उपयोग करने के लिए ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
नियमित रूप से: आध्यात्मिक अभ्यास में निरंतरता महत्वपूर्ण है। आप ऋण मोचक मंगल स्तोत्रम का जाप अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं, चाहे वह सुबह, शाम या किसी अन्य सुविधाजनक समय पर हो। नियमित अभ्यास से देवता के साथ आपका संबंध गहरा हो सकता है और आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।

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