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संकट मोचन हनुमानाष्टक स्तोत्र - सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और पढ़ने के लाभ

मंगल - 02 अप्रैल 2024

9 मिनट पढ़ें

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संकट मोचन हनुमान अष्टक" एक आठ छंदों वाला भक्ति भजन है जो भगवान हनुमान की पूजा करता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति के लिए जाने जाते हैं। प्रत्येक छंद हनुमान के दिव्य गुणों की प्रशंसा करता है और प्रतिकूलताओं पर काबू पाने के लिए उनका आशीर्वाद मांगता है। भजन की शुरुआत श्रद्धांजलि से होती है हनुमान के पवित्र चरणों में और उनकी पवित्रता, ताकत और परोपकारिता की प्रशंसा करने के लिए आगे बढ़ते हैं। भक्त हनुमान को पवन देवता के पुत्र के रूप में बुलाते हैं, उनका मार्गदर्शन और सुरक्षा चाहते हैं।

मंत्र

॥ हनुमानाष्टक ॥


बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥


मंत्र का अर्थ



बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
अर्थ - हे बजरंगबलि हनुमान जी ! बचपन मे आपने सूर्य को लाल फल समझकर निगल लिया था, जिससे तीनों लोकों में अंधेरा हो गया था। इससे सारे संसार में घोर विपत्ति छा गई थी । लेकिन इस संकट को कोई भी दूर न कर सका। जब सभी देवताओं ने आकर आपसे विनती की तब आपने सूर्य को अपने मुंह से बाहर निकाला और इस प्रकार सारे संसार का कष्ट दूर हुआ। हे वानर-रूपी हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आप हीं को सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
अर्थ - अपने बड़े भाई बालि के डर से महाराज सुग्रीव किष्किंधा पर्वत पर रहते थें । जब महाप्रभु श्री राम लक्ष्मण के साथ वहाँ से जा रहे थे तब सुग्रीव ने आपको उनका पता लगाने के लिये भेजा । आपने ब्राह्मण का भेष बनाकर भगवान श्री राम से भेंट की और उनको अपने साथ ले आए, जिससे आपने महाराज सुग्रीव को कष्टों से बाहर निकाल कर उनका दुख दूर किया। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
अर्थ - महाराज सुग्रीव ने सीता माता की खोज के लिये अंगद के साथ वानरों को भेजते समय यह कह दिया था की यदि सीता माता का पता लगाए बिना यहाँ लौटे तो सबको मार दिया जाएगा। सब ढूँढ-ढूँढ कर निराश हो गये तब आप विशाल सागर को लाँघकर लंका गये और सीताजी का पता लगाया, जिससे सब के प्राण बच गये। हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
अर्थ - अशोक वाटिका मे रावण ने सीताजी को कष्ट दिया, भय दिखाया और सभी राक्षसियों से कहा कि वे सीताजी को मनाएं, तब उसी समय आपने वहाँ पहुँचकर राक्षसों को मारा । जब सीता माता ने स्वयं को जलाकर भस्म करने के लिए अशोक वृक्ष से अग्नि कि विनती की, तभी आपने अशोक वृक्ष के ऊपर से भगवान श्रीराम की अंगूठी उनकी गोद मे डाल दी जिससे सीता मैया शोकमुक्त हुईं । हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
अर्थ - लक्ष्मण की छाती मे बाण मारकर जब मेघनाथ ने उन्हे मूर्छित कर दिया। उनके प्राण संकट में पर गये । तब आप वैध्य सुषेण को घर सहित उठा लाये और द्रोण पर्वत सहित संजीवनी बूटी लेकर आए जिससे लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा हुई। हे महावीर हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
अर्थ - रावण ने भीषण युद्ध करते हुए भगवान श्रीराम और लक्ष्मण सहित सभी योद्धाओं को नाग पाश में जकड़ लिया । तब श्रीराम सहित समस्त वानर सेना संकट मे घिर गई, तब आपने हीं गरुड़देव को लाकर सबों को नागपाश से मुक्त कराया। हे महावीर हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
अर्थ - जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को उठाकर अपने साथ पाताल लोक मे ले गया, उसने भली-भांति देवी की पूजा कर सबसे सलाह करके यह निश्चय किया की इन दोनों भाइयों की बलि दूँगा, उसी समय आपने वहाँ पहुँचकर भगवान श्रीराम की सहायता करके अहिरावण का उसकी सेना सहित संहार कर दिया। हे बजरंगबली हनुमान जी, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥
अर्थ - हे वीरों के वीर महाप्रभु आपने देवताओं के तो बड़े-बड़े कार्य किये हैं । अब आप मेरी तरफ देखिए और विचार कीजिए कि मुझ गरीब पर ऐसा कौन सा संकट आ गया है जिसका निवारण नहीं कर पा रहें है । हे महाप्रभु हनुमान जी, मेरे ऊपर जो भी संकट आया है उसे कृपा कर दूर करें । हे बजरंगबली, इस संसार मे ऐसा कौन है जो यह नहीं जानता है की आपको हीं सभी संकटों का नाश करने वाला कहा जाता है।

हनुमानाष्टक स्तोत्रम् के लाभ

माना जाता है कि हनुमान अष्टक का जाप करने या सुनने से कई लाभ होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
1. जीवन में चुनौतियों पर विजय पाने के लिए आंतरिक शक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प।
2. बुरी शक्तियों, नकारात्मक ऊर्जाओं और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा
4. बाधाओं को दूर करना (विघ्नहर्ता)
5. शारीरिक कल्याण, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन को बढ़ावा देना।
6. भगवान राम का आशीर्वाद
7. पिछले पापों और गलत कार्यों का समाधान करना

हनुमानाष्टक स्तोत्रम्स्तो त्र का जाप कौन कर सकता है और कब करना चाहिए ?
हनुमान अष्टक का जाप कोई भी व्यक्ति कर सकता है जिसकी भगवान हनुमान के प्रति श्रद्धा और भक्ति हो। उम्र, लिंग या जाति के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं। चाहे आप हिंदू धर्म के कट्टर अनुयायी हों या आध्यात्मिक संबंध चाहने वाले व्यक्ति हों, आप ईमानदारी और भक्ति के साथ हनुमान अष्टक का जाप कर सकते हैं।

हनुमान अष्टक का जाप कब करना चाहिए, इसके समय को लेकर कोई सख्त नियम नहीं हैं। हालाँकि, कुछ दिन बहुत खास माने जाते हैं -

स्तोत्र का जाप कैसे करें?
हनुमान अष्टक का जाप करने से पहले, यहां कुछ पारंपरिक प्रथाएं दी गई हैं जिनका पालन भक्त अधिक केंद्रित और सार्थक अनुभव की तैयारी के लिए कर सकते हैं:
आंतरिक सफ़ाई: शारीरिक रूप से साफ़ महसूस करने के लिए स्नान करें या अपने हाथ और चेहरा धो लें। यह आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक हो सकता है।
शांतिपूर्ण वातावरण: विकर्षणों से मुक्त एक शांत, स्वच्छ स्थान ढूंढें जहाँ आप जप पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
साधारण पोशाक: आरामदायक और साफ कपड़े पहनें जिससे आप आराम से बैठ सकें।
भक्तिपूर्ण मानसिकता: भगवान हनुमान के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ जप करें। अपने जप के लिए एक इरादा निर्धारित करें, चाहे वह सुरक्षा, शांति या आध्यात्मिक विकास की मांग कर रहा हो।
प्रार्थना (वैकल्पिक): आप जप करने से पहले भगवान हनुमान को एक छोटी प्रार्थना अर्पित कर सकते हैं, अपना आभार व्यक्त कर सकते हैं और उनसे प्रार्थना कर सकते हैं

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