खाटू श्याम मंदिर: कहानी, यात्रा और ज्ञान के शब्दों का अनावरण
मंगल - 16 अप्रैल 2024
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खाटू श्याम जी, जिन्हे कई नामों से जाना जाता है जैसे – खाटू नरेश, लखदातार, बाबा श्याम, इत्यादि। खाटू श्याम जी कलयुग के सबसे पूजनीय देवता में से एक है। खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यह भारत का प्रसिद्ध मंदिर है जो खाटू गांव में स्थित है। यह मंदिर श्री श्याम बाबा को समर्पित है और भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
विषय सूची
1. खाटू श्याम जी की उत्पत्ति कैसे हुई?
2. हारे का सहारा
3. ग्यारस या एकादशी के दिन खाटू श्याम का महत्व
4. खाटू श्याम जी किसके अवतार है?
5. खाटू श्याम जी की आरती का समय
6. खाटू श्याम जी का मंत्र

खाटू श्याम जी की उत्पत्ति कैसे हुई?
खाटू श्याम जी की उत्पत्ति महाभारत के युद्ध से मानी जाती हैं। महाभारत के युद्ध में बर्बरीक कोरवो की ओर से युद्ध करने वाला था। बर्बरीक घटोत्कच का पुत्र था। वह हमेशा कमजोर लोगो की सहायता करता था और तब कोरावों की सेना कमजोर थी। बर्बरीक भगवान शिव और मां दुर्गा की तपस्या करता था। तपस्या से उसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त थे, जिनका निशाना कभी भी खाली नही जाता। जिसके बारे भगवान श्री कृष्ण जानते थे। इसलिए श्री कृष्ण बर्बरीक को रोकने के लिए उसके पास ब्राह्मण का वेश धारण करके चले गए एवं उससे अपना सिर दान करने के लिए कहा। बर्बरीक कभी भी उससे मांगने वाले को मना नही करता इसलिए वह मान गया पर उसने एक इच्छा जताई कि वह उनके दिव्य रूप के दर्शन करना और युद्ध देखना चाहता है। कृष्ण ने यह मांग स्वीकार कर ली। फाल्गुन शुक्ला एकादशी की पूरी रात्रि को बर्बरीक ने भगवान कृष्ण का ध्यान किया और द्वादशी को उन्हें अपने शीश का दान कर दिया। बर्बरीक जी का शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। कथा के अनुसार एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सौप दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी ने द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे।
हारे का सहारा
खाटू श्याम जी भगवान को हारे के सहारे नाम से जाना जाता है क्योंकि वह हर उस इंसान की सहायता करते हैं जो हारा हुआ या कमजोर होता है। वह उनसे मांगने वाले को कभी भी मना नही करते है। महाभारत के युद्ध के समय भी उन्होंने ऐसा ही किया था। उनका एक नारा भी प्रसिद्ध है_
“हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा”
ग्यारस या एकादशी के दिन खाटू श्याम का महत्व
एकादशी को खाटू श्याम जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक एकादशी के दिन यहां भक्तो की भारी भीड़ होती है। ग्यारस का दिन खाटू श्याम का सबसे शुभ दिन माना जाता है। और उसके बाद आने वाली द्वादशी की चूरमा बाटी का भोग लगाया जाता है। बाबा श्याम के जन्मदिन के अवसर पर एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है, जिसको खाटू श्याम लक्खी मेला के नाम से जाना जाता है। और यह प्रतिवर्ष अलग – अलग महीने में आयोजित होता है।
खाटू श्याम जी किसके अवतार है?
खाटू श्याम जी की उत्पत्ति भगवान श्री कृष्ण से होने के कारण उन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है।

खाटू श्याम जी की आरती का समय
खाटू श्याम जी के मंदिर में हर दिन पांच बार आरती होती है। हालांकि, सर्दियों और गर्मियों में आरती का समय अलग होता है।
गर्मी में आरती का समय
मंगला आरती: सुबह 4:30 बजे।
श्रृंगार आरती: सुबह 7:00 बजे।
भोग आरती: दोपहर 12:30 बजे।
संध्या आरती: शाम 7:30 बजे।
शयन आरती: रात 10:00 बजे।
सर्दियों में आरती का समय
मंगला आरती: सुबह 5:30 बजे।
श्रृंगार आरती: सुबह 8:00 बजे।
भोग आरती: दोपहर 12:30 बजे।
संध्या आरती: शाम 6:30 बजे।
शयन आरती: रात 9:00 बजे।
सर्दी और गर्मी के मौसम में दर्शन का समय अलग-अलग होता है। सर्दियों में मंदिर सुबह 5:30 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे बंद हो जाता है. वहीं, गर्मियों में मंदिर सुबह 4:30 बजे खुलता है और रात 10:00 बजे बंद हो जाता है।
खाटू श्याम जी का मेला चलने के दौरान मंदिर के दरबार 24 घंटे खुले रहते हैं।
खाटू श्याम जी का मंत्र
खाटू श्याम जी के कुछ मंत्र ये हैं
ॐ श्याम देवाय बर्बरीकाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय सुह्र्दयाय नमो नमः ।।
महा धनुर्धर वीर बर्बरीकाय नमः ।।
श्री मोर्वये नमः ।।
श्री मोर्वी नन्दनाय नमः ।।
ॐ सुह्र्दयाय नमो नमः ।।
श्री खाटूनाथाय नमः ।।
श्री शीशदानेश्वराय नमः ।।
ॐ श्री श्याम शरणम् मम: ।।
ॐ मोर्वी नंदनाय विद् महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात्

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