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कालीघाट मंदिर: देवी काली का सर्व शक्तिशाली स्थल

सोम - 06 मई 2024

5 मिनट पढ़ें

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हिंदू धर्म में मां काली को सर्व शाक्तिशाली देवी के रुप में पूजा जाता है। काली को मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी माना जाता है। पश्चिम बंगाल में मां काली को समर्पित कई मंदिर है। इनमे से ही एक है कालीघाट काली मंदिर। भारत के पश्चिम बंगाल के कोलकाता के मध्य में स्थित यह मंदिर एक पूजनीय हिंदू तीर्थस्थल है। यह प्राचीन मंदिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, जो पूरे देश और विदेशों से भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। कालीघाट मंदिर 51 शक्तिपिठो में से एक प्रमुख शक्ति पीठ है माना जाता है यहां दिव्य देवी सती का दाहिना पैर का अंगूठा गिरा था।

विषय सूची

1. कालीघाट मंदिर का इतिहास
2. मां काली का महत्व
3. कालीघाट मंदिर की वास्तुकला
4. प्रसिद्ध आरती
5. भोग
6. मंदिर के खुला रहने का समय
7. कालीघाट मंदिर कैसे पहुंचे।

कालीघाट मंदिर का इतिहास

पश्चिम बंगाल के कोलकाता मे स्थित कालीघाट मंदिर का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। हालाँकि इसका उल्लेख 15वीं शताब्दी में रचित मानसर भासन और 17वीं शताब्दी में कवि कंकण चंडी में किया गया है। मंदिर की वर्तमान संरचना 1809 में सबर्ना रॉय चौधरी परिवार के द्वारा की गई थी। 1835 में काशीनाथ रॉय ने मंदिर चौक में एक नट मंदिर बनवाया। 1843 में वैष्णव उदय नारायण मंडल ने कालीघाट मंदिर चौक में वर्तमान श्यामराय मंदिर की स्थापना की। 1858 में श्यामराय मंदिर के लिए मदन गोपाल कोले द्वारा एक दल मंच स्थापित किया गया था। संतोष रॉय चौधरी जो काली भक्त थी उन्होने 1798 में मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया। इस मंदिर के निर्माण को पूरा होने में 11 साल का समय लगा। माना जाता है कि रॉय चौधरी परिवार मंदिर के पारंपरिक संरक्षक है। यहां आने वाले तीर्थ यात्रि का मंदिर के कुंडुपुकुर टैंक में डुबकी लगाना पवित्र माना जाता है।

मां काली का महत्व 

कोलकाता में कालीघाट काली मंदिर प्राचीन हिन्दू कथाओं और धार्मिक प्रथाओं में बहुत महत्व रखता है।
1. कालीघाट काली मंदिर हिंदू देवी काली को समर्पित है और पूर्वी भारत में 51 शक्तिपीठों में से एक है, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वह स्थान है जहाँ देवी सती के दाहिने पैर की उंगलियाँ गिरी थीं।
2. मंदिर का नाम "कालीघाट" देवी काली से लिया गया है जो मंदिर में निवास करती हैं और "घाट" (नदी का किनारा) जहाँ मंदिर स्थित है।
3. मंदिर में देवी काली की अनूठी मूर्ति में तीन बड़ी आँखें, एक लंबी उभरी हुई जीभ और चार सोने के हाथ हैं, जो दिव्य ज्ञान, मानव अहंकार के वध और भक्तों के लिए आशीर्वाद का प्रतीक हैं।
4. मंदिर अपनी विशिष्ट बंगाली स्थापत्य शैली के लिए जाना जाता है, जिसमें स्नान घाट, एक पवित्र तालाब जिसमें गंगा का पवित्र जल माना जाता है, और राधा-कृष्ण को समर्पित एक मंदिर शामिल है।
5. तीर्थयात्री काली पूजा, दुर्गा पूजा और बंगाली नव वर्ष जैसे विभिन्न त्यौहारों के लिए मंदिर आते हैं और स्नान यात्रा जैसे अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, जहाँ पुजारी आँखों पर पट्टी बाँधकर मूर्तियों को स्नान कराते हैं।

कालीघाट मंदिर की वास्तुकला

कोलकाता में कालीघाट काली मंदिर एक अनूठी और महत्वपूर्ण वास्तुकला शैली को दर्शाता है जिसे बंगाल वास्तुकला के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर बंगाल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी विशेषता एक चार-तरफा इमारत है जिसमें एक छोटा गुंबद और गुंबददार संरचना को ढंकने वाला एक छोटा समान आकार का प्रक्षेपण है। छत के ढलान वाले किनारों को 'चला' कहा जाता है, जो इसे 'चला मंदिर' बनाता है। मंदिर की बाहरी दीवारें हरे और काले रंग की टाइलों के हीरे के शतरंज के पैटर्न से सजी हैं। मुख्य मंदिर में देवी काली की पूजनीय मूर्ति है, जिसे काले पत्थर से बनाया गया है और सोने और चांदी से सजाया गया है। मूर्ति की पहचान तीन आँखों, एक सोने की जीभ और चार हाथों से होती है, जो दिव्य ज्ञान, मानव अहंकार पर विजय, भक्तों के लिए सुरक्षा और मार्गदर्शन का प्रतीक है। मंदिर की वास्तुकला पश्चिम बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शाती है।

प्रसिद्ध आरती

कालीघाट काली मंदिर में विशेष आरती होती हैं जो कि पुजारियों और भक्तों द्वारा की जाने वाली दैनिक पूजा पद्धतियों का अभिन्न अंग हैं। दीपों के साथ आरती समारोह अंधकार को दूर करने और दिव्य आशीर्वाद के आह्वान का प्रतीक हैं, जिससे भक्त देवी काली की दिव्य उपस्थिति से जुड़ पाते हैं और अपने जीवन में उनका आशीर्वाद प्राप्त कर पाते हैं। कालीघाट काली मंदिर में आरती की रस्म में देवी काली की पूजा की जाती है। आरती के दौरान, श्रद्धा और आराधना के रूप में मूर्ति के सामने दीपक तथा मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं और आरती की जाती हैं। यह अनुष्ठान देवी के प्रति भक्तों के सम्मान, कृतज्ञता और भक्ति का प्रतीक है। आरती समारोह हिंदू पूजा पद्धतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भक्त और ईश्वर के बीच एक आध्यात्मिक संबंध बनाता है।

भोग 

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित कालीघाट मंदिर देवी काली को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। कालीघाट मंदिर में देवी को अद्वितीय व्यंजन परोसे जाते हैं। आम तौर पर, दिन में दो बार भोग परोसा जाता है। सुबह लगभग 6:30 बजे सबसे पहले फल और मिठाई परोसी जाती है।
चावल, पुलाव, भाजी (बेसन में डूबी हुई सब्जियाँ और तली हुई सब्जियाँ), करी, मछली, मटन, मिठाई और फल पहले मुख्य भोग में शामिल होते हैं, जो दोपहर 2:00 बजे के आसपास परोसा जाता है।
शाम 6:00 से 7:00 बजे के बीच अगला मुख्य भोजन परोसा जाता है। शाम के भोजन में संदेश, बैंगन भाजा (तले हुए बैंगन के टुकड़े), आलू भाजी और मौसमी सब्जियों से बनी विभिन्न भाजियाँ शामिल हैं।
अंतिम भोजन रात 10:30 बजे परोसा जाता है। मुख्य प्रसाद मिठाई और दूध है।

मंदिर के खुला रहने का समय

कालीघाट मंदिर हफ्ते के सातों दिन खुला रहता है। मंदिर सुबह 5:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक तथा शाम को 5:00 बजे से रात्रि 10:30 बजे तक खुला रहता है। मंदिर भोग के लिए दोपहर 02:00 बजे से शाम 05:00 बजे तक बंद रहता है। मंगलवार, शनिवार और रविवार को मंदिर बंद होने का समय रात्रि 11:30 बजे है।

कालीघाट मंदिर कैसे पहुंचे?

कालीघाट मंदिर पहुंचने के कई विकल्प है। यदि आप हवाई मार्ग से आते है तो वहा से मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर है। यदि आप बस द्वारा काली मंदिर जाना चाहते है तो बस स्टैण्ड से मंदिर की दूरी 13 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 12 किलोमीटर है।

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