करवा चौथ पर्व - श्रंगार, प्यार भरे पल और पति के लिए दिल से की गई प्रार्थना।
गुरु - 17 अक्तू॰ 2024
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करवा चौथ का पर्व महिलाओं द्वारा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। करवा चौथ पति पत्नी के प्रेम का त्योहार हैं, इस दिन पत्नियाँ पति के लिए निर्जल व्रत रखती हैं और चन्द्रमा के उदय होने के पश्चात अपना व्रत खोलती हैं। इस व्रत के फल स्वरूप पति की आयु लंबी होती हैं और वह स्वस्थ जीवन व्यतीत करते हैं।

तिथि, शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय समय
यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता हैं। चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर रात 09 बजकर 30 मिनट से प्रारंभ होगी और 01 नवंबर को रात 09 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। करवा चौथ का पूजन मुहूर्त 01 नवंबर को शाम 05 बजकर 36 मिनट से शाम 06 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। 1 नवंबर को करवा चौथ वाले दिन चंद्रोदय 8 बजकर 26 मिनट पर होगा।
करवा चौथ का महत्व
सबसे पहले यह व्रत देवी पार्वती ने शिव जी के लिए रखा था। अन्य मान्यताओं के अनुसार द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्त करने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। एक और मान्यता के अनुसार जब असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली थी तब सभी देवगणों ने ब्रह्मा जी से अनुरोध किया तब उन्होंने सभी देवताओं की पत्नियों से यह व्रत करने को कहा। और उन्होंने अपने-अपने पतियों के लिए यह व्रत रखा और परिणामस्वरूप देवताओं की विजय हुई। तब से ही हर सुहागन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करने लगी।
करवा चौथ की पूजन विधि
करवा चौथ के दिन स्नान करने के बाद मंदिर की साफ़ सफ़ाई करके दीपक जलाएँ। फिर गौरीशंकर का स्मरण करके व्रत का संकल्प लें। संध्याकाल में पुनः स्नान करके पूजा स्थल पर गेहूं से फलक बनाएं और उसके बाद चावल पीस कर करवा की तस्वीर बनाएं। इसके बाद अठवारी, हलवा और भोजन बनाकर तैयार करें। इस दिन शिव परिवार की अर्चना की जाती हैं। मॉं की मूर्ति का निर्माण करें और उनकी गोद में गणेश जी को विराजमान करें। उनका श्रंगार करें और उनके सामने जल से भरा कलश रखें और करवा भी रखें जिससे चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा और उस पर साथिया अवश्य बनाए। विधि पूर्वक शिव परिवार का पूजन करें और उनसे अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए कामना करें। कथा के दौरान अपने हाथ में गेहूं या चावल के १३ दानें अपने हाथ में रखें। पूजा के पश्चात चंद्रमा निकलते ही अपने पति को छलनी से देखकर उनके हाथ से जल ग्रहण करें और अपना व्रत खोले।
महिलाएँ क्या पहनें?
महिलाओं को किसी भी त्योहार में सजने संवरने का बहुत शौक़ होता हैं परंतु यह आवश्यक है कि सही रंग का चुनाव किया जाएँ। कई मान्यताओं के अनुरूप पूजा के लिए कुछ रंगों को शुभ नहीं माना जाता है जो कि हैं- काला रंग, सफेद रंग या भूरा रंग इन्हें बहुत ही अशुभ माना जाता है इसलिए आप कोशिश करें कि आपके चुने हुए वस्त्रों में ये रंग ना हो। इन्हें अशुभ माना जाता है क्योंकि ये रंग नकारात्मकता से जुड़े हैं और करवा चौथ सकारात्मकता, प्रार्थना और प्रेम का दिन है। इन रंगों से
व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। तभी उसने अपनी भूल सुधारी और फिर अगले साल करवा चौथ का व्रत किया और वर मॉंगा कि उसे उसका सुहाग मिल जाए। फलस्वरूप उसका पति जीवित हो जाता हैं।
पति भी रखते हैं उपवास
आजकल पति भी अपनी पत्नियों की सलामती और उनका साथ देने के लिए करवा चौथ का व्रत रखते हैं। जो की उनके प्रेम का परिचय देता हैं, आज की युवा पीढ़ी हर क्षेत्र में यह सिद्ध करती हैं कि दोनों लिंग एक बराबर होते हैं, पतियों का यह कदम विकसित समाज की ओर इशारा करता हैं।
विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार का आयोजन
करवा चौथ का व्रत मुख्यतः उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है जो कि हैं- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान। शहरी क्षेत्रों में अलग ट्रेंड चलित हैं जिसमें सुहागन महिलाएँ इकट्ठा होकर पूजा का आयोजन करती हैं, और रात व्रत खोलने के बाद सपरिवार होटल जाती हैं। दक्षिणी राज्यों में इस व्रत का पालन कुछ अल्प समुदाय द्वारा ही किया जाता हैं। आंध्र प्रदेश मे इसे अटला टड्डी केनाम से जाना और मनाया जाता हैं।
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