दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा के रूप
शुक्र - 03 मई 2024
6 मिनट पढ़ें
शेयर करें
दुर्गा सप्तशती एक हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का वर्णन करता है। इसे देवी महात्म्य या चंडी पाठ के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रंथ ऋषि मार्कंडेय द्वारा लिखित मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है, और इसमें 13 अध्यायों में व्यवस्थित 700 श्लोक हैं। यह देवी-भागवत पुराण, महाभागवत और देवी उपनिषद के साथ शक्तिवाद में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।
नवरात्रि के दौरान नियमित रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि जो लोग रोजाना इस पाठ का पाठ करते हैं, उन्हें अपने जीवन में काले जादू और बाधाओं से छुटकारा मिल सकता है। दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा के सात रूपों का वर्णन किया गया है।
विषय सूची
1. कात्यायनी: बाधा दूर करने वाली
2. ब्रह्मचारिणी: त्याग, तपस्या तथा सदाचार की देवी
3. महागौरी: पवित्रता, कृपा तथा क्षमा प्रदान करने वाली
4. कालरात्रि: दुर्गा का सबसे उग्र रूप
5. सिद्धिदात्री: दुर्गा का अंतिम रूप
6. चंद्रघंटा: जिसके सिर पर तीसरी आखंं
7. शैलपुत्री: भगवान शिव की पत्नी

कात्यायनी: बाधा दूर करने वाली
मां दुर्गा का रूप मां कात्यायनी को बाधाओं को दूर करने वाली देवी माना जाता है। मां दुर्गा के इस दैवीय रूप की पूजा छटे नवरात्रा को की जाती है। भक्त मां कात्यायनी की कृपा बनाए रखने के लिए मां की आराधना करते हैं और मां का आशिर्वाद उन पर बना रहता है। ऐसी मान्यता है कि कात्यायनी माता का व्रत और उनकी पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधा दूर होती है। ज्योतिषों के अनुसार यदि किसी लड़की के विवाह में बार बार रुकावट आती है तो उसे मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए।

ब्रह्मचारिणी: त्याग, तपस्या तथा सदाचार की देवी
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजे जाने वाली मां ब्रह्मचारिणी को तपस्या की देवी कहा जाता है। ब्रह्मचारिणी दो शब्दो से मिलकर बना हैं ब्रह्म जिसका अर्थ है तपस्या और चारिणी जिसका अर्थ हैं आचरण करने वाली। इसलिए मां ब्रह्मचारिणी को तप का आचरण करने वाली देवी कहा जाता है। मां ब्रह्मचारिणी देवी पार्वती का अविवाहित रूप है। देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तो पर कृपा दृष्टि बनाए रखती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के बाद स्त्रोत और कवच का पाठ करना चाहिए।
महागौरी: पवित्रता, कृपा तथा क्षमा प्रदान करने वाली
मां महागौरी, मां दुर्गा की आठवीं शक्ति हैं। नवरात्रि के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि देवी पार्वती की कठिन तपस्या के कारण ही उन्हें महागौरी का अवतार प्राप्त हुआ था। तपस्या से महागौरी का शरीर काला पड़ गया था परन्तु शिव जी ने इन्हें गंगा में स्नान करने को कहा और इनका शरीर चमक उठा। गंगा स्नान से इनका रंग गौरा हो गया और इन्हें महागौरी कहा जानें लगा।
मां महागौरी का स्वरूप अत्यंत सौम्य है। इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है और इनके वस्त्र और आभूषण भी सफ़ेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इनके दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका वाहन बैल है। इनका स्वभाव अति शांत है।
मां महागौरी की पूजा करने से भक्तो के सभी काम सफल होते हैं। माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से कन्याओं को मनचाहा वर का आशीर्वाद मिलता है। माँ के इस स्वरूप की पूजा-आराधना से सभी नौ देवी प्रसन्न होती हैं। मां महागौरी को गुलाबी रंग बहुत पसंद होता है। इसलिए गुलाबी रंग के वस्त्र पहनकर उनकी पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

कालरात्रि: दुर्गा का सबसे उग्र रूप
कालरात्रि का शाब्दिक अर्थ है "काल" (डार्कनेस) और "रात्रि" (रात), जिससे इसका मतलब होता है "काल की रात"। कालरात्रि, देवी दुर्गा के नौ रूपों में से सातवां स्वरूप है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। इसमें मां का स्वरूप काजल के समान काला होता है।
कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है। माता कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। ज्योतिषीय मान्यताओं के मुताबिक, देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
मां कालरात्रि की पूजा सुबह और रात के समय में भी की जाती है. मान्यता है कि मां को रातरानी का फूल बहुत पसंद है। इस दिन माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है। महासप्तमी के दिन मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीज़ें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इन चीज़ों का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
सिद्धिदात्री: दुर्गा का अंतिम रूप
मां सिद्धिदात्री, मां दुर्गा के नौ रूपों में नौवीं और अंतिम है। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका नाम सिद्धिदात्री इसलिए पड़ा है क्योंकि सिद्धि का मतलब है अलौकिक शक्ति या ध्यान करने की क्षमता, और दात्री का मतलब है देने वाली या पुरस्कार देने वाली। मां सिद्धिदात्री को देवी सरस्वती का भी स्वरूप माना गया है। इनकी पूजा से सभी देवियों की पूजा का फल मिल जाता है।
चंद्रघंटा: जिसके सिर पर तीसरी आखंं
हिंदू धर्म में मां दुर्गा के तीसरे रूप चंद्रघंटा के सिर पर तीन आंखें हैं। मां चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होता है, जिसकी वजह से उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा है। चंद्रघंटा का मतलब है, "वह जिसके पास घंटी के आकार का आधा चंद्रमा है"। मां चंद्रघंटा के सिर पर रत्नजड़ित मुकुट होता है और कंठ में सफ़ेद पुष्पों की माला होती है। मां चंद्रघंटा के दस हाथ होते हैं और इनके हाथों में दस हथियार हैं, जिनमें ढाल, तलवार, खड़्ग, त्रिशूल, धनुष, चक्र, पाश, गदा, और बाणों से भरा तरकश शामिल है। मां चंद्रघंटा का वाहन सिंह है और इनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।
मां चंद्रघंटा की पूजा में उपासक को सुनहरे या पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।

शैलपुत्री: भगवान शिव की पत्नी
शैलपुत्री, भगवान शिव की पत्नी हैं। शैलपुत्री को पार्वती और हेमावती के नाम से भी जाना जाता है। शैलपुत्री का शाब्दिक अर्थ है, पर्वत (शैला) की बेटी (पुत्री)। प्राचीन कथा के अनुसार, शैलपुत्री का पिछला जन्म सती के नाम से था और वे भगवान शिव की पत्नी थीं। अगले जन्म में वे हिमालय के राजा हिमावत की बेटी के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ और वे शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं।
शैलपुत्री को पर्वतों की देवी माना जाता है। मान्यता है कि वे योग, साधना, तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेने वाले सभी भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखती हैं। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पूर्वांचल, नेपाल आदि पर्वतीय इलाकों में इनकी पूजा की विशेष परंपरा है। वाराणसी में शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर है,
जहां माना जाता है कि सिर्फ़ दर्शन करने से ही भक्तों की मुरादें पूरी हो जाती हैं। चैत्र नवरात्र के पहले दिन यानी प्रतिपदा को जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है, उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं।
मां दुर्गा के सभी रूपों का अपना एक महत्त्व है। माना जाता है कि मां दुर्गा के सभी रूपों की पूजा करने से दैवीय फल प्राप्त होता है। मां दुर्गा की पूजा करने का सबसे अच्छा समय नवरात्रि का होता है। इसलिए नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा को पूजा करने से भक्तो को मनचाहा फल प्राप्त होता है।
उत्सव एप के साथ पूजा बुक करे
आजकल हम व्यस्थ दिनचर्या के कारण पूजा पाठ से दूर होते जा रहे है। उत्सव एप आपकी जिंदगी में पूजा पाठ से जुड़े रहने के लिए उम्मीद की एक किरण लेकर आया है जो हमे दैवीय शक्ति से जोड़े रखती है। जहा आप व्यस्थ दिनचर्या के साथ पूजा कर सकते है। उत्सव एप के माध्यम से आप काशी में माँ दुर्गा कुंड मंदिर में पूजा कर सकते है। आप ईश्वर से जुड़ने के लिए बस एक क्लिक दूर हैं। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और अपनी पसंदीदा पूजा अभी बुक करें। पूजा बुक करने के बाद, पंडित जी आपका नाम और गोत्र बताकर आपकी ओर से पूजा करेंगे। आपकी पूजा का वीडियो आपको व्हाट्सएप के ज़रिए भेजा जाएगा और पूजा प्रसाद के साथ-साथ ईश्वरीय आशीर्वाद आपके दरवाज़े पर पहुँचाया जाएगा।
शेयर करें