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श्री कालिका अष्टकम् - सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और पढ़ने के लाभ

बुध - 10 अप्रैल 2024

7 मिनट पढ़ें

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कालिका अष्टकम एक भक्ति भजन है जो देवी काली को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में एक डरावनी और शक्तिशाली देवी हैं। "अष्टकम" शब्द का अर्थ आठ श्लोकों या छंदों से बनी रचना है। जैसे, कालिका अष्टकम में आठ छंद शामिल हैं जो देवी काली के गुणों, शक्तियों और दिव्य स्वरूप का गुणगान करते हैं। देवी काली को अक्सर गहरे रंग वाली एक भयंकर योद्धा देवी के रूप में चित्रित किया जाता है, जो भगवान शिव के शरीर के ऊपर खड़ी होती हैं, और खोपड़ी की माला और मृत्यु और विनाश के अन्य प्रतीकों से सजी होती हैं। अपने डरावने रूप के बावजूद, उन्हें एक दयालु देवी माँ भी माना जाता है जो अपने भक्तों को बुरी ताकतों से बचाती है और आध्यात्मिक मुक्ति प्रदान करती है।

मंत्र

ध्यानम्:
गलदरक्तमुण्डावलीकण्ठमाला
महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी
महाकालकामाकुला कालिकेयम्।।1।।

भुजे वामयुग्मे शिरोSसिं दधाना
वरं दक्षयुग्मेSभयं वै तथैव।
सुमध्याSपि तुंगस्तनाभारनम्रा
लसदरक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या।।2।।

शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी
लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची।
शवाकारमञ्चाधिरूढ़ा शिवाभि-
श्चतुर्दिक्षुशब्दायमानाSभिरेजे।।3।।


स्तुति:
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन्
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।4।।

जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं
सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम्।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।5।।

इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली
मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात्।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।6।।

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते।
जपध्यानपूजासुधाधौतपंका
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।7।।

चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।8।।

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा
कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।9।।

क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं
मया लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।10।।

फलश्रुति:
यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य-
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ति:
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।11।।

।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम्।।

मंत्र का अर्थ

ध्यानम्:

गलदरक्तमुण्डावलीकण्ठमाला
महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी
महाकालकामाकुला कालिकेयम्।।1।।
अर्थ – ये भगवती कालिका गले में रक्त टपकते हुए मुण्डसमूहों की माला पहने हुए हैं, ये अत्यन्त घोर शब्द कर रही हैं, इनकी दाढ़े हैं तथा स्वरूप भयानक है, ये वस्त्ररहित हैं, ये श्मशान में निवास करती हैं, इनके केश बिखरे हुए हैं और ये महाकाल के साथ कामलीला में निरत हैं।

भुजे वामयुग्मे शिरोSसिं दधाना
वरं दक्षयुग्मेSभयं वै तथैव।
सुमध्याSपि तुंगस्तनाभारनम्रा
लसदरक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या।।2।।
अर्थ – ये अपने दोनों बाएं हाथों में नरमुण्ड और खड्ग ली हुई हैं तथा अपने दोनों दाहिने हाथों में वर और अभयमुद्रा धारण किये हुई हैं। ये सुन्दर कटिप्रदेश वाली हैं, ये उन्नत स्तनों के भार से झुकी हुई सी हैं, इनके ओष्ठ-द्वय का प्रान्त भाग रक्त से सुशोभित है और इनका मुख मण्डल मधुर मुस्कान से युक्त है।

शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी
लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची।
शवाकारमञ्चाधिरूढ़ा शिवाभि-
श्चतुर्दिक्षुशब्दायमानाSभिरेजे।।3।।
अर्थ – इनके दोनों कानों में दो शवरूपी आभूषण हैं, ये सुन्दर केशवाली हैं, शवों के हाथों से बनी सुशोभित करधनी ये पहने हुई हैं, शवरूपी मंच पर ये आसीन हैं और चारों दिशाओं में भयानक शब्द करती हुई सियारिनों से घिरी हुई सुशोभित हैं।

स्तुति:

विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन्
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।4।।
अर्थ – ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके तीनों गुणों का आश्रय लेकर तथा आप भगवती काली की ही आराधना कर प्रधान हुए हैं। आपका स्वरूप आदि रहित है, देवताओं में अग्रगण्य है, प्रधान यज्ञस्वरुप है और विश्व का मूलभूत है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं
सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम्।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।5।।
अर्थ – आपका यह स्वरुप सारे विश्व को मुग्ध करने वाला है, वाणी द्वारा स्तुति किये जाने योग्य है, यह सुहृदों का पालन करने वाला है, शत्रुओं का विनाशक है, वाणी का स्तम्भन करने वाला है और उच्चाटन करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली
मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात्।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।6।।
अर्थ – ये स्वर्ग को देने वाली हैं और कल्पता के समान हैं। ये भक्तों के मन में उत्पन्न होने वाली कामनाओं को यथार्थ रूप में पूर्ण करती हैं और वे सदा के लिए कृतार्थ हो जाते हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते।
जपध्यानपूजासुधाधौतपंका
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।7।।
अर्थ – आप सुरापान से मत्त रहती हैं और अपने भक्तों पर सदा स्नेह रखती हैं। भक्तों के मनोहर तथा पवित्र हृदय में ही सदा आपका आविर्भाव होता है। जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमृत से आप भक्तों के अज्ञानरूपी पंक(कीचड़) को धो डालने वाली हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।8।।
अर्थ – आपका स्वरुप चिदानन्दघन, मन्द-मन्द मुस्कान से संपन्न, शरत्कालीन करोड़ों चन्द्रमा के प्रभास समूह के प्रतिबिम्ब सदृश और मुनियों तथा कवियों के हृदय को प्रकाशित करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा
कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।9।।
अर्थ – आप प्रलयकारी घटाओं के समान कृष्णवर्णा हैं, आप कभी रक्तवर्णवाली तथा कभी उज्जवल वर्ण वाली भी हैं। आप विचित्र आकृति वाली तथा योगमायास्वरुपिणी हैं। आप न बाला, न वृद्धा और ना कामातुरा युवती ही हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं
मया लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।10।।
अर्थ – आपके ध्यान से पवित्र होकर चंचलतावश इस अत्यन्त गुप्त भाव को जो मैंने संसार में प्रकट कर दिया है, मेरे इस अपराध को आप क्षमा करें; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

फलश्रुति:

यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य-
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ति:
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:।।11।।
अर्थ – यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकों में महान हो जाता है। उसे अपने घर में आठों सिद्धियाँ प्राप्त रहती हैं और मरने पर मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।

श्री कालिका अष्टकम् के लाभ

कालिका अष्टक के कुछ महत्वपूर्ण लाभ हैं:
1. माँ कालिका की कृपा
2. रक्षा और सुरक्षा
3. आत्मविश्वास और साहस
4. आत्मिक विकास
5. आध्यात्मिक साधना

अष्टकम का जाप कैसे करें ?

देवी काली अष्टकम का जाप करने से पहले, यहां कुछ पारंपरिक प्रथाएं दी गई हैं जिनका पालन भक्त अधिक केंद्रित और सार्थक अनुभव की तैयारी के लिए कर सकते हैं:

आंतरिक सफ़ाई: शारीरिक रूप से साफ़ महसूस करने के लिए स्नान करें या अपने हाथ और चेहरा धो लें। यह आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक हो सकता है।
शांतिपूर्ण वातावरण: विकर्षणों से मुक्त एक शांत, स्वच्छ स्थान ढूंढें जहाँ आप जप पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
साधारण पोशाक: आरामदायक और साफ कपड़े पहनें जिससे आप आराम से बैठ सकें।
भक्तिपूर्ण मानसिकता: देवी काली के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ जप करें। अपने जप के लिए एक इरादा निर्धारित करें, चाहे वह सुरक्षा, शांति या आध्यात्मिक विकास की मांग कर रहा हो।
प्रार्थना (वैकल्पिक): आप जप से पहले देवी काली की एक छोटी प्रार्थना कर सकते हैं, अपना आभार व्यक्त कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद मांग सकते हैं।

श्री कालिका अष्टकम् का जाप कौन कर सकता है और कब करना चाहिए?

"काली अष्टकम" का जाप कोई भी व्यक्ति कर सकता है जिसकी देवी काली के प्रति आस्था और भक्ति हो। उम्र, लिंग या जाति के आधार पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं हैं।

जाप कब करना है, इसके लिए काली अष्टकम का जाप करने के लिए कई समय शुभ माने जाते हैं:
1. शाम: शाम के समय काली अष्टकम का जाप करना, विशेषकर गोधूलि के समय या सूर्यास्त के बाद, शुभ माना जाता है। यह सुरक्षा और आशीर्वाद के लिए देवी काली की दिव्य ऊर्जा का आह्वान करने में मदद कर सकता है।
2. नवरात्रि के दौरान: नवरात्रि के नौ दिवसीय त्योहार, विशेष रूप से देवी काली को समर्पित आखिरी तीन दिन, काली अष्टकम का जाप करने का एक शुभ समय है। भक्त अक्सर नवरात्रि उत्सव के दौरान अपनी पूजा के हिस्से के रूप में इस भजन का पाठ करते हैं।
3. अमावस्या: अमावस्या या अमावस्या को देवी काली की पूजा के लिए अत्यधिक पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन काली अष्टकम का जाप उनका आशीर्वाद और सुरक्षा पाने के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है।
4. आवश्यकतानुसार: इसके अतिरिक्त, जब भी आपको देवी काली के मार्गदर्शन, सुरक्षा या आशीर्वाद की आवश्यकता महसूस हो तो आप काली अष्टकम का जाप कर सकते हैं। इसका जप संकट के समय, चुनौतियों का सामना करने या आध्यात्मिक उत्थान के दौरान किया जा सकता है।

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