भारत के शक्तिशाली 51 शक्तिपीठ: भारत के पवित्र शक्ति केंद्रों के लिए एक मार्गदर्शिका
गुरु - 28 मार्च 2024
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सनातन धर्म में 51 शक्तिपीठों का मां सती के भक्तों के बीच बहुत महत्व है। 51 शक्ति पीठ वे पवित्र स्थान हैं जहां माता सती के विभिन्न अंग गिरे थे और हर शक्ति पीठ की एक अनोखी कहानी है।
विषयसूची
1. कैसे बने 51 शक्तिपीठ?
2. 51 शक्ति पीठ का महत्व
3. 51 शक्तिपीठों के नाम

कैसे बने 51 शक्तिपीठ?
देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों के निर्माण के पीछे एक कहानी है। कहानी यह है कि महादेव और माता सती के विवाह के बाद, प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, महादेव और माता सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया।
माता सती को यज्ञ के बारे में पता चला तो पहले तो वह क्रोधित हो गईं लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें अपने घर जाकर समारोह में शामिल होने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं है। इसलिए, माता ने यज्ञ में भाग लेने का फैसला किया। यज्ञ में पहुंचने के बाद माता सती ने अपने पिता से सवाल किया - वह उन्हें भव्य यज्ञ में भाग लेने के लिए निमंत्रण क्यों नहीं भेजा? सवाल का जवाब देने के बजाय प्रजापति दक्ष महादेव का अपमान करने लगते हैं। महादेव का यह अपमान सती सह न सकीं और यज्ञ अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये।
जब महादेव को घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने क्रोधित होकर प्रजापति दक्ष को दंडित किया। उनकी तीसरी आंख से उनके अवतार वीरभद्र अस्तित्व में आते हैं। उन्होंने वीरभद्र को प्रजापति दक्ष को दंड देने का आदेश दिया, तब वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया और उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। लेकिन सभी देवी-देवताओं के अनुरोध के बाद उन्होंने उसके शरीर पर एक बकरी का सिर लगाया और उसे जीवन वापस दे दिया।
इस घटना के बाद महादेव दुःख से भर गये और माता सती के शव को अपने कंधे पर लेकर पूरे विश्व में भ्रमण करते हैं। वह संसार के प्रति अपने सारे कर्तव्य भूल जाते है। संसार को बचाने के लिए भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र का उपयोग करते हैं और माता सती के शरीर को टुकड़ों में काट देते हैं। जिन-जिन स्थानों पर माता सती के अंग और आभूषण गिरे, वे शक्तिपीठ बन गये।
शक्ति पीठ का महत्व
शक्तिपीठों का बहुत महत्व है जो भक्तों के मन में आध्यात्मिक भावना जगाता है। वे देवी शक्ति और भगवान शिव के साथ बहुत महत्व रखते हैं, जो दिव्य स्त्री शक्ति और पुरुष और महिला ऊर्जा की ब्रह्मांडीय एकता का प्रतीक हैं।
आध्यात्मिक महत्व- ऐसा माना जाता है कि शक्ति पीठ वहीं हैं जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे जब भगवान शिव उनके आत्मदाह के बाद उनके जले हुए अवशेषों को ले जा रहे थे। भक्त आशीर्वाद पाने और परमात्मा से जुड़ने के लिए इन स्थलों पर जाते हैं।
ऊर्जा केंद्र- शक्तिपीठों को शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र माना जाता है जहां लोग देवी सती से जुड़ने के लिए आते हैं। साथ ही, यह भक्तों को आध्यात्मिकता का एक उन्नत अनुभव भी देता है।
संस्कृति और तीर्थ- शक्तिपीठ अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। भक्त ज्ञान प्राप्त करने और लोकप्रिय त्योहार मनाने के लिए इन स्थलों पर जाते हैं। साथ ही, यह व्यक्ति को अपनी भक्ति व्यक्त करने और आशीर्वाद पाने में मदद करता है।
स्त्री शक्ति का प्रतीक- शक्ति पीठ ब्रह्मांड में पुरुष और महिला ऊर्जा के बीच संतुलन बनाने के लिए स्त्री शक्ति का जश्न मनाते हैं।
51 शक्तिपीठ के नाम
51 शक्तिपीठों के स्थान वर्तमान भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका सहित भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। कुछ सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में असम में कामाख्या मंदिर, जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर और पश्चिम बंगाल में कालीघाट काली मंदिर शामिल हैं।
प्रत्येक शक्तिपीठ की अपनी अनूठी पौराणिक कथाएं, अनुष्ठान और परंपराएं जुड़ी हुई हैं, जो भक्तों के लिए तीर्थयात्रा के अनुभव को विविध और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती हैं।
आइये जानते है माँ के 51 अंग कहा गिरे, अंग गिरने से शक्तिपीठ के नाम और यें कहा स्थित है -
1. हिंगुल या हिंगलाज, कराची- यहाँ देवी का सिर का भाग गिरा था।
2. शर्कररे- यहाँ माता की आँख गिरी थी।
3. सुगंधा,बांग्लादेश - यहाँ माँ की नासिका गिरी थी
4. महामाया,Kashmir- यहाँ माँ का कंठ गिरा था
5. ज्वालजी,हिमाचल प्रदेश- यहाँ माता की जीभ गिरी थी ।
6. त्रिपुरमलिनी,पंजाब- यहाँ माँ का बाया स्तन गिरा था
7. बैद्यनाथ ,झारखंड- यहाँ माँ का हृदय गिरा था
8. महामाया,नेपाल- यहाँ माँ के दोनों घुटने गिरे थे।
9. दक्षयाणी,तिब्बत- यहाँ माँ का दया हाथ गिरा था
10. विरजा,ओड़िसा- यहाँ माँ की नाभि गिरी थी
11. गंडकी,नेपाल- यहाँ माँ का मस्तक गिरा था
12. बहुला,प.बंगाल- यहाँ माँ का बाया हाथ गिरा था
13. उज्जयिनी,प. बंगाल- यहाँ माँ की दायी कलाई गिरी थी
14. त्रिपुरा सुंदरी,त्रिपुरा- यहाँ माँ का दाया पैर गिरा था
15. भवानी,बांग्लादेश- यहाँ माँ की दाई भुजा गिरी थी
16. भ्रामरी,प.बंगाल- यहाँ माँ का दाया पर गिरा था
17. कामाख्या,असम- यहाँ माता की योनि का भाग गिरा था
18. प्रयाग,इलाहाबाद- यहाँ माँ की हाथ की उँगली गिरी थी
19. जयंती,बांग्लादेश- यहाँ माँ की बाईं जाँघ गिरी थी
20. युगाध्या,प.बंगाल - यहाँ माँ का अंगूठा गिरा था
21. कालीपीठ,कोलकाता- यहाँ माँ के बाये पैर का अंगूठा गिरा था
22. किरीट,प.बंगाल- यहाँ माँ का मुकुट गिरा था
23. विशालाक्षी,यू.पी- यहाँ माँ के कान के कुंडल गिरे थे
24. कन्याश्रम - यहाँ माता का पृष्ठ गिरा था
25. सावित्री,हरियाणा- यहाँ माता की एड़ी गिरी थी
26. गायत्री,अजमेर- यहाँ माँ के दो मणिबंध गिरे थे
27. श्रीशेल,बांग्लादेश - यहाँ माँ का गला गिरा था
28. देवगर्भा,प.बंगाल - यहाँ माँ की अस्थि गिरी थी
29. कालमाधव,मध्यप्रदेश- यहाँ माँ का बाया नितंब गिरा था
30. शोणदेश,मध्यप्रदेश- यहाँ माँ का दया नितंब गिरा था
31. शिवानी,यू.पी.- यहाँ माँ का दाया वक्ष गिरा था
32. वृंदावन,मथुरा- यहाँ माँ के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे
33. नारायणी,कन्याकुमारी- यहाँ माँ के दांत गिरे थे
34. वाराही,पंचसागर- यहाँ माँ के निचले दांत गिरे थे
35. अपर्णा,बांग्लादेश - यहाँ माँ की पायल गिरी थी
36. श्रीसुन्दरी,लद्दाख- यहाँ माँ के दाये पैर की पायल गिरी थी
37. कपालिनी,प.बंगाल- यहाँ माँ की बायी एड़ी गिरी थी
38. चन्द्रभागा ,गुजरात - यहाँ माँ का उदर गिरा था
39. अवंति,उज्जैन- यहाँ माँ के ओष्ठ गिरे थे
40. ब्राह्मरी,महाराष्ट्र - यहाँ माँ के ठोड़ी गिरी थी
41. सर्वशैल स्थान,आंध्रप्रदेश- यहाँ माँ के वाम गाल गिरे थे
42. गोदावरीतीर - यहाँ माता के दक्षिण गण गिरे थे
43. कुमारी, बंगाल - यहाँ माता का दाया स्कंध गिरा था
44. उमामहादेवी,भारत नेपाल सीमा - यहाँ माँ का बाया स्कंध गिरा था
45. कालिका,प.बंगाल- यहाँ माँ के पैर की हड्डी गिरी थी
46. जयदुर्गा,कर्नाटक- यहाँ माँ के दोनों कान गिरे थे
47. महिष्मर्दीनी,प.बंगाल - यहाँ माता का मन: गिरा था
48. यशोरेश्वरी,बांग्लादेश- यहाँ माता के हाथ और पैर गिरे थे
49. फुल्लरा,प.बंगाल- यहाँ माता के ओष्ठ गिरे थे
50. नंदिनी,प.बंगाल- यहाँ माता के गले का हार गिरा था
51. इन्द्राक्षि,श्रीलंका- यहाँ माँ की पायल गिरी थी
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