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अंबुबाची मेला 2025: कामाख्या मंदिर में दिव्य स्त्री ऊर्जा को नमन

बुध - 05 जून 2024

3 मिनट पढ़ें

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 मासिक धर्म, प्रजनन शक्ति और शक्ति की उपासना — गुवाहाटी के रहस्यमयी कामाख्या मंदिर में हर वर्ष होने वाला एक अनूठा पर्व।

 अम्बुबाची मेला क्या है?

 अम्बुबाची मेला भारत के सबसे अनोखे और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली त्योहारों में से एक है, जो हर साल असम के नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर में मनाया जाता है। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जो देवी कामाख्या के मासिक धर्म (menstruation) को पवित्र मानते हुए उसे मनाता है।
जहां समाज में अक्सर मासिक धर्म को कलंक माना जाता है, वहीं अंबुबाची में इसे सृजन की शक्ति के रूप में पूजा जाता है। यह पर्व हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से प्रारंभ होता है। 2025 में, यह जून के तीसरे सप्ताह में मनाया जाएगा (सटीक तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार घोषित होगी)।

पौराणिक महत्व: क्यों 'रक्तस्राव' करती हैं देवी कामाख्या?

 पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब सती माता ने स्वयं को अग्नि में समर्पित किया, तो भगवान शिव उनका शरीर लेकर तांडव करने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया, जो धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे — जिन्हें शक्ति पीठ कहा गया।
कामाख्या मंदिर वह स्थान है जहां सती की योनि (गर्भ और प्रजनन अंग) गिरी थी। यही कारण है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है। गर्भगृह में एक चट्टान के आकार की योनि है, जिसे प्राकृतिक जलधारा निरंतर स्नान कराती रहती है।
अम्बुबाची के दौरान यह योनि 'रजस्वला' होती है और मंदिर तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाता है।

तीन दिन का विराम और पवित्रता

 इस दौरान:
कोई पूजा, हवन या दर्शन नहीं होते।
किसान खेतों में हल नहीं चलाते।
कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया जाता।
यह तीन दिन देवी की "विश्रांति" के प्रतीक हैं — जैसे स्त्री मासिक धर्म के दौरान विश्राम करती है, वैसे ही धरती माता और देवी शक्ति भी करती हैं।

चौथे दिन का महोत्सव: मंदिर खुलने का पर्व

 तीन दिन के बाद चौथे दिन मंदिर के पट खुलते हैं:
भक्त सूर्योदय से पहले मंदिर की ओर दौड़ लगाते हैं।
"रक्त वस्त्र" (रक्तरंजित वस्त्र) को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
विशेष हवन, पूजन और मंत्रोच्चारण होते हैं।
इस दिन देवी के दर्शन करने से कर्मों का शुद्धिकरण, संतान सुख, और मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मिलता है।

 कामाख्या मंदिर: रहस्य, तंत्र और साधना का केंद्र

यह भारत के प्रमुख तांत्रिक स्थलों में से एक है।
यहां अघोरी, तांत्रिक, और साधक शक्तिसाधना हेतु एकत्र होते हैं।
मंदिर की वास्तुकला बंगाल और असम के मिश्रण से बनी है — मधुमक्खी के छत्ते जैसी आकृति और देवी-गंधर्व की शिल्पकारी।
गर्भगृह की सीढ़ियाँ आपको नीचे उस पवित्र चट्टान तक ले जाती हैं, जो देवी की योनि का प्रतीक है।

 कौन आते हैं अंबुबाची मेले में?

नागा साधु, अघोरी, तांत्रिक
कल्पवासी भक्त, जो मेला अवधि में व्रत और साधना करते हैं
देश-विदेश से श्रद्धालु जो अद्भुत ऊर्जा और दिव्यता को अनुभव करना चाहते हैं
यह स्थान "शक्ति सर्किट" माना जाता है, जहां देवी की ऊर्जा सबसे अधिक प्रवाहित होती है — खासकर अंबुबाची के दौरान।

अम्बुबाची मेला 2025 – संभावित तिथियां

यां: 22 जून से 25 जून 2025 के बीच (अंतिम तिथियां मंदिर समिति द्वारा घोषित की जाएंगी)
Utsav ऐप पर पूजा बुकिंग और तिथि की जानकारी के लिए अपडेट पाएं।

आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संतुलन

अनेक योगियों और वैज्ञानिकों का मानना है कि अंबुबाची के समय पृथ्वी की ऊर्जा तरंगें विशेष रूप से सक्रिय होती हैं। इस समय की गई पूजा, जप और ध्यान विशेष फलदायक होते हैं।
यह पर्व:
मासिक धर्म को पुनः पवित्रता देता है
नारीत्व को महिमा प्रदान करता है
सृष्टि की शक्ति को उत्सव में बदलता है

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