महालया अमावस्या: पूर्वजों के सम्मान का महत्व और अनुष्ठान
सोम - 30 सित॰ 2024
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पितरों के तर्पण के लिए पितृ पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण दिन महालय अमावस्या को ही माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है।
विषय सूची
1. महालय अमावस्या पर पितरों का तर्पण दिलाएगा पुण्य, तृप्त होंगे पितर
2. क्या है महालया का इतिहास व महत्व
3. नवरात्र की शुरुआत और पितृपक्ष के अंत का प्रतीक
4. पितृदोष से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण तिथि
5. महालया अमावस्या पर किए जाने वाले पूजन-अनुष्ठान
6. क्या है पिंडदान
7. भारत में इन जगहों पर श्राद्ध और तर्पण का महत्व
8. दान और जरूरतमंदों को भोजन कराने का भी विधान
9. महालया के बाद शुरू हो जाती है नवरात्रि

महालय अमावस्या पर पितरों का तर्पण दिलाएगा पुण्य, तृप्त होंगे पितर
पितरों के तर्पण के लिए पितृ पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण दिन महालय अमावस्या को ही माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 2 अक्टूबर, बुधवार को महालया अमावस्या की तिथि पड़ रही है। पितृपक्ष के आखिरी दिन पड़ने वाले इस महत्वपूर्ण पितृदोष से मुक्ति के लिए भी पूजा का विधान बताया गया है। मान्यता है कि महालया अमावस्या पर पितरों के श्राद्ध व तर्पण करने से न केवल उनकी आत्मा को मुक्ति मिलती है बल्कि व्यक्ति के पुण्य कर्मों में भी वृद्धि होती है।
क्या है महालया का इतिहास व महत्व
ब्रह्मपुराण के अनुसार, देवताओं की पूजा करने से पहले, मनुष्य को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि इससे देवता प्रसन्न होते हैं। महालया वह दिन है जब देवताओं के आग्रह पर देवी दुर्गा राक्षसों के संहार के लिए धरती पर अवतरित हुईं थीं। इसके बाद नवरात्रि भी आरंभ हो जाती है। इसलिए इस दिन पितरों के लिए किए गए श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है।
मान्यता है कि राक्षस राज महिषासुर के अंत के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवी दुर्गा की आराधना की। राक्षस राज को वरदान था कि उसे कोई भी देवता या मनुष्य नहीं मार सकता था। इसलिए, जब देवता उससे हार गए तो उन्होंने आदि शक्ति की आराधना की। इसपर मां दुर्गा ने महिषासुर से युद्ध कर उसका मर्दन किया। मान्यता है कि यह युद्ध भाद्रपद के मध्य से अमावस्या तक जारी रहा। उस युद्ध में मारे गए देवताओं और राक्षसों के सम्मान में इस दिन (Mahalaya Amavasya 2024) को महालया अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। साथ ही हमारे पूर्वजों को भी याद किया जाता है।
नवरात्र की शुरुआत और पितृपक्ष के अंत का प्रतीक
महालया अमावस्या नवरात्र की शुरुआत और पितृपक्ष के अंत का प्रतीक है। इस बार आश्विन माह की अमावस्या तिथि 01 अक्टूबर, 2024 को रात्रि 09 बजकर 38 मिनट पर आरंभ होगी। वहीं, इस तिथि का अंत 2 अक्टूबर को रात्रि 12 बजकर 19 मिनट पर होगा। यानी 3 अक्टूबर की शुरुआत हो जाएगी। ऐसे में सूर्य उदय तिथि के अनुसार महालया अमावस्या 02 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
पितृदोष से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण तिथि
पितृदोष से मुक्ति के लिए महालया अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध भी बहुत महत्व रखता है। कुछ लोग महालया अमावस्या पर अपने सभी पितरों का तर्पण करते हैं। पितृदोष दूर होने से जीवन में तरक्की और सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दिवस को महालया अमावस्या के अलावा सर्वपितृ अमावस्या और विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है।
महालया अमावस्या पर किए जाने वाले पूजन-अनुष्ठान
महालया अमावस्या पर तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है। इसमें पूर्वजों को जल, तिल, चावल और अन्य पवित्र वस्तुएं अर्पित की जातीं हैं। ये पिंडदान नदी या तालाब के पास करने का विधान बताया गया है मान्यता है कि इस प्रकार अर्पित किया गया पिंडदान पूर्वजों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यह अनुष्ठान पुरोहितों के माध्यम से वैदिक रीति से कराना चाहिए।
क्या है पिंडदान
पिंडदान पूर्वजों को पिंड के रूप में किया जाता है जिसे तिल, शहद और घी के साथ मिश्रित चावल से बनाया जाता है। यह पितरों की आत्माओं को अर्पित किया जाने वाला भोजन होता है जो उन्हें पोषण देता है और उनकी आध्यात्मिक यात्रा को सुगम बनाता है।
भारत में इन जगहों पर श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व
भारत में बिहार में गया, वाराणसी और हरिद्वार समेत त्रयंबकेश्वर में किए जाने वाले श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व बताया गया है।
दान और जरूरतमंदों को भोजन कराने का भी विधान
महालया अमावस्या पर, गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक चीजें दान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। ब्राह्मणों, पुजारियों और गायों, कुत्तों और कौवों जैसे जानवरों को भोजन कराने की भी मान्यता है। माना जाता है कि इस दिन इनको दिया गया भोजन पितरों तक पहुंच जाता है।
महालया के बाद शुरू हो जाती है नवरात्रि
महालया केवल श्राद्ध और तर्पण का दिन ही नहीं है। यह पितृ पक्ष से देवी पक्ष के आगमन का दिन भी है। यह दिन पूर्वजों को सम्मानित करने से लेकर देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के संकल्प शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है। महालया के अगले दिन से नवरात्रि शुरु हो जाती है जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसे बुराई पर अच्छाई के विजय प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है|
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