भगवान नरसिंह और छिन्नमस्ता देवी जयंती 2025: महत्व, रीति-रिवाज और आध्यात्मिक ज्ञान
गुरु - 24 अप्रैल 2025
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हिंदू आध्यात्मिकता के विशाल कैनवास में भगवान विष्णु के दिव्य अवतार और देवी के उग्र रूपों का गहन महत्व है। इनमें भगवान नरसिंह (आधे मानव-आधे सिंह का अवतार) और देवी छिन्नमस्ता (शक्ति का स्वशिरश्छेदन करने वाला रूप) विशेष रूप से प्रमुख हैं, जो अहंकार के विनाश, धर्म की रक्षा और भौतिक मोह से परे होने के प्रतीक हैं।
2025 में, नरसिंह जयंती और छिन्नमस्ता जयंती एक ही दिन - 11 मई - को पड़ रही हैं, जो भक्तों के लिए दिव्य कृपा प्राप्त करने, आध्यात्मिक परिवर्तन और नकारात्मक प्रवृत्तियों से मुक्ति पाने का एक दुर्लभ एवं शक्तिशाली अवसर प्रदान करती है।
यह ब्लॉग इन दोनों भयावह और कल्याणकारी देवताओं से जुड़ी पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिक संदेशों और पूजा-विधियों की गहन व्याख्या करता है, साथ ही इस पावन दिन पर उनकी उपासना का सही तरीका भी बताता है।
विषय सूची
1. भगवान नरसिंह जयंती: धर्म के संरक्षक
- नरसिंह अवतार की पौराणिक कथा
- आध्यात्मिक महत्व
- पूजा विधि एवं अनुष्ठान
2. देवी छिन्नमस्ता जयंती: परम बलिदान
- छिन्नमस्ता की पौराणिक कथा
- उनके स्वरूप का प्रतीकात्मक अर्थ
- आध्यात्मिक महत्व
- पूजा विधि एवं अनुष्ठान
3. नरसिंह और छिन्नमस्ता जयंती की संयुक्त शक्ति
4. समापन: दिव्य परिवर्तन का दिवस

1. भगवान नरसिंह जयंती: धर्म के संरक्षक
नरसिंह अवतार की पौराणिक कथा
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, जब-जब अधर्म (अन्याय) धर्म (न्याय) पर हावी होता है, भगवान विष्णु अवतार लेते हैं। चतुर्थ अवतार नरसिंह ने अत्याचारी असुर राजा हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए अवतार लिया, जिसने एक वरदान प्राप्त कर लिया था जिससे वह लगभग अजेय हो गया था:
- उसे न मनुष्य न पशु मार सकता था
- न घर के भीतर न बाहर मारा जा सकता था
- न दिन न रात में उसका वध हो सकता था
- कोई भी अस्त्र-शस्त्र उसे हानि नहीं पहुँचा सकता था
किंतु उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना रहा। पुत्र की भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक यातनाएँ दीं, किंतु दिव्य हस्तक्षेप से प्रह्लाद हर बार बच जाता। अंततः जब असुर ने प्रह्लाद को विष्णु के अस्तित्व को सिद्ध करने को कहा, तब भगवान नरसिंह एक स्तंभ से संध्या काल में (न दिन न रात), अर्धनारीश्वर रूप में (न मनुष्य न पशु) प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को अपनी जंघा पर (न भूमि न आकाश) मार डाला - इस प्रकार वरदान की सभी शर्तों को पूरा करते हुए ब्रह्मांडीय संतुलन की पुनर्स्थापना की।
आध्यात्मिक महत्व
नरसिंह प्रतीक हैं:
- अहंकार एवं मिथ्या अभिमान का विनाश - हिरण्यकशिपु अहंकार का प्रतीक है जबकि नरसिंह ऐसे भ्रम को चीर देते हैं
- दिव्य संरक्षण - जैसे उन्होंने प्रह्लाद की रक्षा की, वैसे ही सच्चे भक्तों की बुरी शक्तियों से सुरक्षा होती है
- उग्रता एवं करुणा का समन्वय - यद्यपि भयानक रूपधारी हैं, तथापि नरसिंह भक्तों के प्रति अत्यंत स्नेहिल हैं
पूजा विधि एवं अनुष्ठान
भगवान नरसिंह की जयंती पर उनकी आराधना हेतु:
1. नरसिंह मंत्रों का जाप - "ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं..." अथवा "ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय नमः" मंत्रों का उच्चारण करें
2. पवित्र ग्रंथों का पाठ - नरसिंह कवच, नरसिंह स्तोत्र अथवा विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
3. उपवास एवं ध्यान - व्रत रखकर उनके स्वरूप पर ध्यान करने से भय एवं अहंकार पर विजय प्राप्त होती है
4. दान एवं सेवा - अन्न-वस्त्र दान करना अथवा निर्धनों की सहायता करने से प्रभु प्रसन्न होते हैं
2. देवी छिन्नमस्ता जयंती: परम बलिदान
छिन्नमस्ता की पौराणिक कथा
छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं (ज्ञान की देवियों) में छठा हैं, जिन्हें स्वयं का कटा हुआ मस्तक धारण किए हुए दर्शाया जाता है, जिससे रक्त की तीन धाराएँ प्रवाहित होती हैं - एक स्वयं के मुख में तथा दो उनकी सहचरी डाकिनी एवं वर्णिनी के मुख में। वे कामदेव एवं रति के ऊपर खड़ी हैं, जो भौतिक मोह के अतिक्रमण का प्रतीक है।
उनके स्वरूप का प्रतीकात्मक अर्थ
- आत्मोत्सर्ग एवं अहंकार का विलय - स्वयं का शीश काटना अहंकार के समर्पण को दर्शाता है
- जीवन, मृत्यु एवं पुनर्जन्म - रक्त की धाराएँ सृष्टि एवं प्रलय के चक्र को प्रदर्शित करती हैं
- तांत्रिक ज्ञान - वे इस परम सत्य को प्रकट करती हैं कि जीवन जीवन से ही पोषित होता है तथा आध्यात्मिक जागृति हेतु मोह का त्याग आवश्यक है
आध्यात्मिक महत्व
छिन्नमस्ता सिखाती हैं:
- निर्भयता - वे प्रदर्शित करती हैं कि सच्चा ज्ञान अहंकार की मृत्यु का निर्भीकता से सामना करने से प्राप्त होता है
- ऊर्जा प्रवाह (कुंडलिनी जागरण) - रक्त की तीन धाराएँ इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ियों का प्रतीक हैं, जो संतुलित आध्यात्मिक ऊर्जा को दर्शाती हैं
- वासना के परे - कामदेव एवं रति पर आरूढ़ होना भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठने का संकेत है।
पूजा विधि एवं अनुष्ठान
उनकी कृपा प्राप्ति हेतु भक्त ये उपाय कर सकते हैं:
1. छिन्नमस्ता मंत्र जाप - "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा" मंत्र का उच्चारण करें
2. उनके स्वरूप पर ध्यान - उनके भयानक किंतु कृपालु रूप का ध्यान करने से अहंकार का विसर्जन होता है
3. तांत्रिक साधनाएँ (दीक्षित साधकों हेतु) - अनुभवी साधक गुरु के मार्गदर्शन में विशिष्ट तांत्रिक अनुष्ठान कर सकते हैं
4. दान एवं तप - लाल पुष्प अर्पित करना, दीप प्रज्वलित करना तथा निर्धनों को भोजन कराने से देवी प्रसन्न होती हैं
3. नरसिंह और छिन्नमस्ता जयंती की संयुक्त शक्ति
2025 में दोनों जयंतियों के एक ही दिन पड़ने से आध्यात्मिक ऊर्जा दुगुनी हो गई है:
- नरसिंह बाह्य नकारात्मकताओं (शत्रु, बाधाएँ) का नाश करते हैं
- छिन्नमस्ता आंतरिक नकारात्मकताओं (अहंकार, लोभ, भय) का नष्ट करती हैं
भक्त इस दिवस का पूर्ण लाभ निम्नलिखित विधियों से उठा सकते हैं:
- दिनारंभ नरसिंह पूजन से करके दिव्य सुरक्षा प्राप्त करें
- दिन का समापन छिन्नमस्ता ध्यान से आंतरिक परिवर्तन करें
- निःस्वार्थ सेवा (सेवा) द्वारा आध्यात्मिक एवं भौतिक जीवन को संतुलित करें
4. समापन: दिव्य परिवर्तन का दिवस
11 मई 2025 कोई सामान्य पर्व नहीं - यह एक दुर्लभ ब्रह्मांडीय संयोग है जहाँ उग्र संरक्षण (नरसिंह) एवं आत्मबोध (छिन्नमस्ता) की ऊर्जाएँ संगमित हो रही हैं। निष्काम भाव से पूजा, मंत्र साधना एवं परोपकार द्वारा भक्त यह प्राप्त कर सकते हैं:
- गहन भय एवं अहंकार का निवारण
- नकारात्मक शक्तियों से दिव्य रक्षा
- कुंडलिनी ऊर्जा द्वारा उच्च चेतना की प्राप्ति
यह नरसिंह एवं छिन्नमस्ता जयंती आपके आध्यात्मिक मार्ग में एक निर्णायक मोड़ बने - जहाँ आप मिथ्या अहंकार का परित्याग कर दिव्य प्रकाश को आत्मसात करें।
ॐ नमो नरसिंहाय!
जय छिन्नमस्ता देवी!
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