फाल्गुन अमावस्या 2024: वह सब कुछ जो आपको जानना आवश्यक है - शुभ तिथि और समय, अर्थ, महत्व, प्रभाव, पूजा, व्रत और उत्सव
गुरु - 07 मार्च 2024
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फाल्गुनी अमावस्या को शुभ क्यों माना जाता है?
फाल्गुनी अमावस्या हिन्दी संस्कृति में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है।फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को फाल्गुन अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यह दिन हिंदू धर्म में शुभ है क्योंकि यह लोगों को अपने पूर्वजों को तर्पण करने, व्रत रखने, दान करने और पवित्र जल में स्नान करने से पितृ दोष को दूर करने में मदद करता है।
इस शुभ दिन के दौरान, भक्त अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुनी अमावस्या पर अनुष्ठान करने और पूजा करने से किसी के जीवन में शांति और समृद्धि आ सकती है।
फाल्गुनी अमावस्या तिथि एवं मुहूर्त
फाल्गुन अमावस्या तिथि :9 मार्च को शाम 6 :17 से शुरू होगी और 10 मार्च को दोपहर 2 बजकर 29 मिनट तक रहेगी ।

फाल्गुनी अमावस्या के रीति रिवाज
फाल्गुनी अमावस्या को हिंदी संस्कृति में विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। एक आम प्रथा है सुबह-सुबह पवित्र नदियों या झीलों में डुबकी लगाना। माना जाता है कि शुद्धिकरण का यह कार्य शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है।
एक अन्य परंपरा तर्पण करने की है, जो पूर्वजों को जल अर्पित करने की एक रस्म है। लोग पैतृक कब्रिस्तानों या जलाशयों में जाते हैं और अपने दिवंगत प्रियजनों को प्रार्थना, फूल और भोजन चढ़ाते हैं।
इसके अलावा कई भक्त फाल्गुनी अमावस्या का व्रत भी रखते हैं। वे किसी भी ठोस भोजन का सेवन करने से बचते हैं और केवल फल और दूध का हल्का भोजन लेते हैं। उपवास को मन को शुद्ध करने और देवताओं के प्रति भक्ति दिखाने का एक तरीका माना जाता है।

फाल्गुनी अमावस्या का महत्व
धार्मिक मान्यता है की फाल्गुन अमावस्या के दिन नदियों में देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए माना जाता है कि अगर आप पवित्र नदी के तट पर खासकर के गंगा नदी में स्नान करते है, तो आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पितृ को भी मोक्ष मिलता है। शास्त्रों में अनंत फलदायी अमावस्या गंगा स्नान को माना गया है। यह सारे दुख दरिद्रता से मुक्ति और कार्यों में सफलता दिलाती है। माना जाता है कि अमावस्या के दिन देवताओं का निवास संगम तट पर होता है। वैसे इस दिन प्रयाग संगम पर स्नान करने का भी विशेष महत्व है।यह दिन अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि यह उस महीने में आता है जहां भगवान शिव और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है।
फाल्गुनी अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए ?
- दिन की शुरुआत शुद्ध और सकारात्मक मानसिकता के साथ करें। शांत और निर्मल वातावरण बनाए रखें.
- यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या झील में डुबकी लगाएं। वैकल्पिक रूप से, आप घर पर अनुष्ठानिक स्नान कर सकते हैं।
- अपने पितरों के लिए पूजा-अर्चना और तर्पण करें. उनके आशीर्वाद के लिए आभार व्यक्त करना और उनका मार्गदर्शन लेना याद रखें।
- पास के किसी मंदिर में जाएं और फाल्गुनी अमावस्या पर आयोजित विशेष प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों में भाग लें।
- अगर आप शारीरिक रूप से सक्षम हैं तो व्रत रखें। यह शरीर और मन को शुद्ध करने का एक तरीका है।
फाल्गुन अमावस्या व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है। दुर्वासा ऋषि इन्द्र देव तथा सभी देवताओं से क्रोधित थे और क्रोध में आकर इंद्र देव और सभी देवताओं को उन्होंने श्राप दे दिया था। जब दुर्वासा ऋषि ने देवताओं को श्राप दिया तो उसके प्रभाव से सभी देवता कमजोर हो गए थे। जिसका फायदा सबसे ज्यादा असुरों को हुआ। असुरों ने मौके का फायदा देखकर देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें परास्त करने मे भी वे सफल रहे । उसके पश्चात सभी देवता गण भगवान श्री हरी विष्णु के पास गए। भगवान श्री विष्णु को महर्षि द्वारा दिए गये श्राप और देवताओं द्वारा किये गये हमले व पराजय के बारे में बताया। तभी भगवान श्री हरी विष्णु ने सभी देवाताओं को सलाह दी की वह सभी दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करें। समुद्र मंथन करने के लिए सभी देवताओ ने असुरों से बात की और उन्हें इसके लिए मनाया। जिससे असुर मान गए देवताओं के साथ संधि कर ली।
अमृत को प्राप्त करने की लालच में समुद्र मंथन करने लगे। जब अमृत निकलता है तब इंद्र का पुत्र जिसका नाम जयंत था, वह अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ जाता है। जिसके बाद दैत्य जयंत का पीछा करते है और सारे दैत्य अमृत प्राप्त कर कर लेते है। इसके बाद अमृत पाने के को लेकर देवताओं और दानवों में बारह दिन तक घमासान युद्ध होता है। इस संघर्ष के दौरान प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कलश से अमृत की कुछ बूंदे गिरती है। उस समय चंद्रमा, सूर्य, गुरु, शनि ने कलश की रक्षा की थी। इस कलह को ज्यादा बढ़ते देख भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी का रूप ले लिया और असुरों का ध्यान भटकाकर देवताओं को छल से अमृत पिला दिया। तभी से अमावस्या के दिन इन जगहों पर स्नान करना ही अत्यधिक शुभ माना जाता है।

पूजा- विधि
1.सुबह-सुबह पवित्र नदी में डुबकी लगाएं।
2.यदि पवित्र स्थानों की यात्रा संभव नहीं है तो आप घर पर ही साफ पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान कर सकते हैं।
3.स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
4.पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प लें और शाम को व्रत तोड़े।
5.दिन के समय अपने पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करें।
6.ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
7.शाम के समय अपने पितरों की स्मृति में पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
8.पीपल के पेड़ के चारों ओर सात परिक्रमा करें।
9.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर किसी की कुंडली में पितृ दोष है तो फाल्गुन अमावस्या का अनुष्ठान करने से यह दोष समाप्त हो जाता है।
इस व्रत को करने वाले भक्तों को समृद्धि एवं आशीर्वाद की प्राप्ति होती है इसी के साथ-साथ पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए, यदि आप भी इन लाभों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो उत्सव ऐप के द्वारा अपने पूर्वजों के नाम से पूजा बुक कराए ।आप फाल्गुन अमावस्या के दिन व्रत रखे ,व्रत कथा का पालन करे और उत्सव ऐप के द्वारा पूरे विधि विधान से पूजा करवाई जाएगी ।
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