वरुथिनी एकादशी: व्रत और आध्यात्मिक नवीकरण का पावन दिवस
शुक्र - 28 मार्च 2025
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वरूथिनी एकादशी हिंदू पंचांग की सबसे पवित्र और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण तिथियों में से एक है। यह वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन व्रत रखने से महान पुण्य, आत्मा की शुद्धि और पापों का नाश होता है। इस लेख में हम वरूथिनी एकादशी 2025 की तिथि, महत्व, व्रत विधि और इस दिन के शुभ कार्यों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
वरूथिनी एकादशी 2025: तिथि और समय
वरूथिनी एकादशी 2025 – गुरुवार, 24 अप्रैल 2025
एकादशी तिथि प्रारंभ – 23 अप्रैल 2025 को रात 16:43 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 24 अप्रैल 2025 को रात 14:32 बजे
सबसे शुभ समय सुबह के समय होता है, जब भक्त व्रत और पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
वरूथिनी एकादशी का महत्व
भगवान विष्णु का आशीर्वाद
यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है और उनकी कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर होता है।
पापों का नाश
वरूथिनी एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म और इस जन्म के पापों का नाश हो जाता है।
इच्छाओं की पूर्ति
श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है।
पौराणिक महत्व
हिंदू ग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी व्रत का पुण्य सोना, गाय और भूमि दान के बराबर माना गया है।
स्वास्थ्य लाभ
यह व्रत न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी लाभदायक होता है। यह शरीर को शुद्ध करने और मानसिक शांति प्रदान करने में सहायक होता है।

वरूथिनी एकादशी व्रत विधि
व्रत की तैयारी
एक दिन पहले सात्त्विक भोजन करें।
अन्न, मसूर की दाल, लहसुन, प्याज और मांसाहार से परहेज करें।
भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प (संकल्प मंत्र) लें।
व्रत के नियम
प्रातः स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अन्न और तामसिक भोजन का पूर्णतः त्याग करें।
भगवान विष्णु की पूजा करें और दीप जलाएं।
विष्णु सहस्रनाम, श्री हरि मंत्र या ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
दान-पुण्य करें।
दान और पुण्य कार्य
जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करें और उसकी परिक्रमा करें।
किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं।
व्रत पारण
अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा के बाद व्रत का पारण करें।
हल्का और सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा मान्धाता एक धर्मपरायण और न्यायप्रिय राजा थे। लेकिन उनके जीवन में एक समस्या थी – उन्हें संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिला था।
राजा ने ऋषि अंगिरा से इस समस्या का समाधान पूछा। ऋषि ने उन्हें वरूथिनी एकादशी का व्रत रखने का सुझाव दिया। राजा और उनकी रानी ने पूरी श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को रखा।
भगवान विष्णु उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उनका पुत्र आगे चलकर एक महान राजा बना।
यह कथा बताती है कि श्रद्धा और भक्ति से किया गया व्रत किसी भी संकट को दूर कर सकता है और मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
वरूथिनी एकादशी का पुण्य फल
आध्यात्मिक उन्नति – आत्मा की शुद्धि और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
पापों का नाश – पिछले जन्म और इस जन्म के पापों का अंत होता है।
स्वास्थ्य लाभ – शरीर और मन को शुद्ध करता है।
मनोकामनाओं की पूर्ति – इच्छाओं की पूर्ति और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
भगवान विष्णु का आशीर्वाद – उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति और सफलता प्राप्त होती है।
वरूथिनी एकादशी पर किए जाने वाले शुभ कार्य
व्रत और उपवास रखें।
भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
किसी जरूरतमंद की मदद करें।
शास्त्रों का पाठ करें या सुनें।
वरूथिनी एकादशी का आध्यात्मिक संदेश
कृतज्ञता का अभ्यास करें – भगवान को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद दें।
ध्यान और आत्मचिंतन करें – मन को शुद्ध और सकारात्मक विचारों से भरें।
सेवा और दान करें – निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करें।
भक्ति को बढ़ाएं – भगवान विष्णु के प्रति अपनी आस्था को और दृढ़ करें।
निष्कर्ष
आत्मशुद्धि का संदेश देता है। इस दिन व्रत, पूजा और दान करने से असीम पुण्य फल प्राप्त होता है।
सच्ची भक्ति और अच्छे कर्म ही हमारे जीवन में शांति और समृद्धि लाते हैं।
भगवान विष्णु की कृपा से यह वरूथिनी एकादशी आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए!
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